हम सभ्य लोग | दीपक मशाल हम सभ्य लोग | दीपक मशाल देह रखने को गर्मबचाए रखने को आत्मा की निष्कलंकताजो स्वेटर, कमीजया सदरी मैंने पहन रखी हैजिसे मैं अपना समझता हूँवह असल में मेरी नहींमैंने सिर्फ कुछ मूल्य देकरउठा लिया उसेखुद को बचाए रखने की खातिर फिर भी मोह का मायाजालया मेरा मैंइसे समझता […]
Tag: Dipak Mashal
Posted inPoems
सिकंदर के खाली हाथ | दीपक मशाल
Posted inPoems
सावधान | दीपक मशाल
Posted inPoems
समय और नीरो की बंसी | दीपक मशाल
Posted inPoems
वो पहाड़ नहीं थे | दीपक मशाल
Posted inPoems
यूँ दुनिया के करिश्मे | दीपक मशाल
Posted inPoems
माँ को कविता | दीपक मशाल
Posted inPoems
मर्दानगी | दीपक मशाल
Posted inPoems