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हम सभ्य लोग | दीपक मशाल

हम सभ्य लोग | दीपक मशाल हम सभ्य लोग | दीपक मशाल देह रखने को गर्मबचाए रखने को आत्मा की निष्कलंकताजो स्वेटर, कमीजया सदरी मैंने पहन रखी हैजिसे मैं अपना समझता हूँवह असल में मेरी नहींमैंने सिर्फ कुछ मूल्य देकरउठा लिया उसेखुद को बचाए रखने की खातिर फिर भी मोह का मायाजालया मेरा मैंइसे समझता […]