साजिंदे | बसंत त्रिपाठी साजिंदे | बसंत त्रिपाठी साजिंदे बजाओ साजकि धुनें शोर में गुम हो रहींगीतों की पंक्ति से सन्नाटा रिसता हैजीवन की गति में जीवन ही घिसता हैसाजिंदे,बजाओ साज कि कसावट की कोई आवाज उभरे रात यह काली और दिन सुफेदरातों के उजाड़ में दिन सखेदहोते हैं बेबस, जाते हैं बिखर-बिखरसाजिंदे, बजाओ साजकि […]
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