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वे आते हैं रोज | अंजना वर्मा

वे आते हैं रोज | अंजना वर्मा वे आते हैं रोज | अंजना वर्मा वे भी निकलते हैं सुबह-सुबहटहलने के लिए पार्क मेंजो जिंदगी की आधी शताब्दी पूरी कर चुके हैंनिकल आए हैं आगेकोई कुछ आगेतो कोई बहुत आगेऔर उनमें से अधिकांश नेखो दिया है अपना आधा अंगहो गए हैं अकेले और अधूरेपरंतु जिंदगी का […]