औरत के लिए क्यों? | अंजना वर्मा
औरत के लिए क्यों? | अंजना वर्मा

औरत के लिए क्यों? | अंजना वर्मा

औरत के लिए क्यों? | अंजना वर्मा

ये तो वे ही सड़कें हैं न
जिन पर से अभी-अभी गुजर गए हैं लड़के?
हो-हल्ला करते हुए
मस्ती में झूमते
बोलते और बतियाते हुए
उन्हीं सड़कों पर लड़कियाँ जा रही हैं
इस तरह गुमसुम
कि चुपके-से निकल जाएँ
किसी की नजर न पड़़े उन पर
ये वे ही घर हैं न
जहाँ कभी रहती थी छोटी-छोटी बच्चियाँ?
शिल्पा, गुंजन, मीता
खेलती रहती थीं
हँसती और हँसाती रहती थीं
मुहल्ले के एक-एक जन को
पर सब पहुँचा दी गईं पराये घर
क्योंकि ये घर उनके अपने नहीं थे
दूसरे-दूसरे घर उनके थे
वहाँ भेज दी गईं
यहाँ उनके भाई रहते हैं
उनके घर हैं ये
ये वे ही प्रसूति-गृह हैं न,
जहाँ बेटे पैदा होते हैं तो
परिजनों की हँसी गूँजती है
और गर्भ की बेटियों के लिए
यही कमरा काल-कोठरी बन जाता है?
यह वही बस है न
जे सबको छोड़ देती है उनके गंतव्य तक?
सबके लिए कितनी अच्छी है
कि उसे आते देख खिल उठते हैं सबके चेहरे
पर इसी में हो गया बलात्कार उस युवती का
क्यों दुनिया की सारी चीजें
बदल जाती हैं एक औरत के लिए ?
जबकि औरत नहीं बदलती किसी के लिए ?

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