आम खा रही
अपनी नातिन
स्वाद मुझे आता है।
चटखारे ले
हूँ-हूँ करती
आम चूसती,
स्वाद की लय में
सिर डोले तो
आँख मटकती
मुक्त हृदय का भाव
दृगों को
गीला कर जाता है।
याद बचपने की
वह माली
और बगीचा
आम उठा भागा
तो उसने मुझे दबोचा
भय दहशत में
स्वाद अमृत का भी
तो मर जाता है।