हूँ पका फल
अब गिरा मैं तब गिरा।
उम्र का अंतिम चरण है
और स्वागत पत्थरों से
लोग ऐसी नाजुकी में
कब निकलते हैं घरों से
हो गया मन
भीष्म तन
शर से विंधा।
मैं नहीं इतिहास वो जो
जिंदगी भर द्रोण झेले
यश नहीं चाहा कभी जो
दान में अंगुष्ठ ले ले
क्या सिधाई है
कि दिल
शूली छिदा।