रात की गाथा | अरुण कमल

रात की गाथा | अरुण कमल

रात की गाथा | अरुण कमल

जैसे उतरने में एक पाँव पड़ा हो ऐसे
मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और
पर जो न थी
ऐसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे

और ऐसे ही सुबह हुई
हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे।

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