Tushar Dhawal
Tushar Dhawal

चाँद पर 
धुंध वही 
जो हममें हम पर है 
तिलस्मी सच सा

जब बागी नींदों के बीच 
कुछ कुछ हमारी उमर की रात 
एक सपना हौले से उछाल कर लोक* लेती है 
रख लेती है आँखों की ओट में 
समंदर खिलती उमर के जज़्बात सा

यह मैं हूँ 
या रात का चाँद है 
सागर है या तुम हो 
कुछ कह सकोगी अभी अपनी नींद से अचानक उठकर 
हटाकर उस लट को 
जो तुम्हें चूमने की बेतहाशा ज़िद में 
तुम्हारे गालों तक बिखर आई है 
सुनो वहीं से यह संवाद 
हवा सागर और चाँद का 
विंड चाइम्स के हृदय से उठती ध्वनि का 
सुनो कि इन सबको ढकता यह अधेड़ बादल 
कैसे रहस्य का दुर्लभ आकर्षण पैदा करता है 
होने के कगार पर नहीं-सा वह 
एक चौखट है और उसके पार धुंध है 
उस धुंध के पार यह चाँद है 
उस चाँद पर हिलोरें मारता सागर है सागर में तुम और तुममें बहती यह हवा 
जो मेरे कान में साँय साँय हो रही है 
मेरे गालों पर अपने नमकीन निशान लिखती हुई 
निर्गुन रे मेरा मन जोगी

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यह जन्म है उस क्षण का जब 
मौन मात्र बच जाता है

फिर छुपा चाँद का मक्खनी रंग 
फिर धूसर उत्तेजित लिपट गया वह नाग उस पर 
आते आषाढ़ की इस रात में 
फिर कुहक उठी नशे में हवा 
और सागर बाहर भीतर खलबल है 
साँसों में गंधक का सोता 
उठता है 
बुलबुलों सा विश्व 
मायावी आखेट पर है

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रात के इस 
नागकेसर वन में 
जिसमें मीठी धुन है घंटियों की 
हज़ारों विंड चाइम्स बजते हैं 
सागर में बादल में चाँद में 
मुझमें और 
रात के इस पहलू में जहाँ 
दुनिया नहीं आ पाती है कभी 
जिसके पहले और एकल बाशिंदे 
मैं हूँ और तुम हो

* बिहार में बोली जाने वाली अंगिका भाषा में  लोक लेने  का वही अर्थ है जो क्रिकेट के खेल में  कैच कर लेने ‘ का अर्थ होता है।

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