मौत की दुर्गम 
अँधेरी घाटियों में 
तुमने खिलाए फूल 
अनगिन प्यार के

मौत थी एकदम खड़ी 
बाँहें पसारे सर्द तेरे सामने 
और मैं भी था निरंतर गर्म 
बाँहों को पसारे मौत के आगे 
तुम्हारे सामने

तुम देखती थीं सिर्फ मेरे प्यार को

दर्द में डूबी तुम्हारी आँखों की पुतली 
चमक उठती थीं बन ब्रह्मांड की लपटें 
इन्हीं लपटों से डर कर रह गई मृत्यु 
हमारे प्यार की ऊष्मा से डरकर रह गई मृत्यु

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अचानक देख लो खुशबू से कैसे तर हुई माटी 
अचानक फूल से देखो है कैसे भर गई घाटी

इन अनगिनत फूलों की 
कोमल पंखुरी से 
है खिला यह धूप का सागर 
कि इनकी खुशबू से 
भर गई है मौत की गागर

अनगिनत ये फूल, 
तुमने ही उगाए हैं 
मरण के बाग में खुशबू 
भी तुमने ही लुटाए हैं

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ये फूल हैं मनुहार के 
मौत की दुर्गम अँधेरी घाटियों में 
फूल अनगिन प्यार के।