मैंने कहा – मैं बाघ हूँ, बाघ खा जाऊँगा तुम्हें चबा डालूँगा बोटी-बोटी उदरस्थ कर लूँगा तुम्हारा अस्तित्व वह सहमी बड़ी-बड़ी आँखों में उतर आया किसी गली-गलियारे का छिपा भय एक अपूर्व दहशत करुणामयी आँखों से मुझे देखा एक बार फिर तुरंत सिमट गई मेरी बाँहों में जिंदगी की पूरी गर्माहट के साथ अब वह थी युगों से ‘भूखा बाघ’ मैं था अवश लाचार बँधा हुआ मेमना करुणामयी आँखों से मैंने देखा उसके प्यार का हिंस्र […]
Tag: Surendra Snigdha
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हमेशा जवान है हमारा प्यार
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लाल चिरैया
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मछलियाँ मनाती हैं अवकाश
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फूल अनगिन प्यार के
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निरंतर बज रहा हूँ
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थिरकता हुआ हरापन
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तुम हो बादल, तुम बरस रही हो
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जहाँ कोई दोस्त नहीं हो
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