परिस्थिति-विज्ञान
परिस्थिति-विज्ञान

प्रकृति के परिवर्तनों के अनुभवों का सहारा लेते हुए
मुझे समझ आ गया है
कि नुकसानदेह है सुखाना
बेहूदा विचारों की दलदल को –

इसलिए कि बिगड़ जाता है प्राकृतिक संतुलन
उन वन्‍य प्राणियों की प्रजातियों विलुप्‍त होने के बाद
जो मौजूद रहती है
दिमाग की दरार के ऊपर

सूख सकती है
विशुद्ध विवेक की बहती नदियाँ
जहाँ से जीवन पाते हैं
विरल स्‍पष्‍ट विचार

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उस पीढ़ी के कंप्यूटर
जो बचा रहना चाहती है जीवित

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