भाषाविज्ञान
भाषाविज्ञान

अंग्रेज निगल जाते हैं
अपने ढेरों अक्षर
शायद अपनी औपनिवेशिक राजनीति के कारण
चीनी फूले नहीं समाते खुशी में
अपनी हर लकीर से
जबकि विदेशी
चुपचाप फैलाते हैं अपनी आँखें
चीनी लिपि के सामने

जर्मन दबाते हैं अपनी ही क्रियाओं को
अपने ही वाक्‍यों की बंद गली में
तुरंत स्‍पष्‍ट हो जाता है
कि कुछ तो घटित हुआ है
जरूरत बस वर्तमान काल को सँभाल कर रखने की है
ताकि स्‍पष्‍ट किया जा सके –
जो घटित हुआ वह क्‍या था

See also  मछली | बद्रीनारायण

पाप है यूनानी भाषा में
याद न करना
प्राचीन यूनानियों की विद्धताको
रोमन भाषाओं से कहीं-कहीं
प्राकृत लैटिन की गंध आती है

जॉर्जियाई मदद करती है जार्जियावासियों की
जिस तरह इतालवी इटलीवालों की
अपने हाथ हिलाते रहने में

एस्‍तोनियाई बोलने वाले
तैरते हैं स्‍वरों पर
जैसे पाताल लोक में

जापानी आराम से बैठ जाती है
छपी हुई आकृतियों में
गतिशील रहती है
बिजली के अर्द्धसंवाहकों में

See also  इस धरती को बचाने के लिए | रेखा चमोली

रूसी में
पढ़ने
और उससे कहीं अधिक बोलने का अनुभव
बताता है
कि बहुत अक्‍सर यह कहा जाता है
कि हमसे जितना हुआ उससे अच्‍छा चाहते थे
कहते हैं खासकर तब
जब शब्‍द और कर्म में मेल नहीं रहता

कहने की जरूरत नहीं
सबसे ज्‍यादा गलतियाँ
रूसी में
विदेशी ही करते हैं

Leave a comment

Leave a Reply