क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैं 
ललित-कलित कविताएँ। 
चाहो तो चित्रित कर दूँ 
जीवन की करुण कथाएँ।।

सूना कवि-हृदय पड़ा है, 
इसमें साहित्य नहीं है। 
इस लुटे हुए जीवन में, 
अब तो लालित्य नहीं है।।

मेरे प्राणों का सौदा, 
करती अंतर की ज्वाला। 
बेसुध-सी करती जाती, 
क्षण-क्षण वियोग की हाला।।

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नीरस-सा होता जाता, 
जाने क्यों मेरा जीवन। 
भूली-भूली सी फिरती, 
लेकर यह खोया-सा मन।।

कैसे जीवन की प्याली टूटी, 
मधु रहा न बाकी? 
कैसे छुट गया अचानक 
मेरा मतवाला साकी??

सुध में मेरे आते ही 
मेरा छिप गया सुनहला सपना। 
खो गया कहाँ पर जाने? 
जीवन का वैभव अपना।।

क्यों कहते हो लिखने को, 
पढ़ लो आँखों में सहृदय। 
मेरी सब मौन व्यथाएँ, 
मेरी पीड़ा का परिचय।।

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