नीलकंठी ब्रज भाग 8 | इंदिरा गोस्वामी
नीलकंठी ब्रज भाग 8 | इंदिरा गोस्वामी

नीलकंठी ब्रज भाग 8 | इंदिरा गोस्वामी – Neelakanthee Braj Part viii

नीलकंठी ब्रज भाग 8 | इंदिरा गोस्वामी

अटलबिहारी भगवान का अटल वन, गोकुलचन्द्र ने जहाँ दावानल का पान किया वह बंजर वन, यशोदा ने जहाँ गौ-दान किया वह गोपाल वन, राधा ने जहाँ पर फूलों के पौधे अपनी सहेलियों के साथ लगाये थे, वह राधाबाग, स्वामी हरिदास का मानस वन, निधुवन और अतिरमणीय निकुंज वन। यहाँ पर ब्रज की माटी को अपने आलिंगनपाश में जकड़े हुए आत्मविभोर श्वेतपुष्पों की झाड़ियाँ हैं। इन पर राधा के नूपुरों की तरह फूल खिलते हैं। यदि कान लगाकर ध्यान से सुनो, तो राधा की पायलों की रुनझुन से दिशाओं के गुंजित होने का आभास मिलता है।

एक प्रचंड आनन्द, मानो सभी दु:ख-वेदनाओं को एक-एक फूल के रूप में रूपान्तरित करता-सा लगता है…सौदामिनी ने भी कई दिनों तक कोशिश की शायद वह भी यह ध्वनि सुन ले…वही अनन्य आध्यात्मिक आह्लाद का स्वर।

परन्तु धीरे-धीरे उसे लगा, वह यह शब्द नहीं सुन पाती। गली-चौरास्तों पर पड़े हुए बीमारों को खोजते फिरने का वह उत्साह भी मानो चूक गया है।…वह उकता गयी है। काफी चतुराई दिखाने के उपरान्त भी अनुपमा उसे चौरासी कोस की परिक्रमा पर ले जाने में असफल ही रही। हताश होने के बावजूद अनुपमा ने यह सुअवसर अपने लिए नहीं खोया और एक दिन इस कष्टपूर्ण यात्रा को निर्विघ्न समाप्त कर वह वापस भी आ गयीं। दूसरे यात्रीगण जब परिक्रमा की समाप्ति पर रमण-रेती में अपना डेरा जमाने लौट आये, तभी अनुपमा भी घर आ गयीं। अनुपमा ने इस बार सौदामिनी को अत्यन्त बुझा हुआ पाया। उसकी आँखों के नीचे उभरे हुए धब्बे अनुपमा की नजर से छुप न सके।

See also  प्रेमा ग्यारहवाँ अध्याय - विरोधियों का विरोध | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

इस कष्टदायी परिक्रमा से थकी हुई माँ की सेवा सौदामिनी रोज की तरह करने लगी। स्नान के लिए पानी तपा दिया। माँ का लाया हुआ प्रसाद सँभाल कर रख दिया। पहले के समान ही बच्चों की तरह माँ के गाल से गाल सटाकर, माँ के पुराने बुखार ने कहीं परेशान तो नहीं किया, यह जानने की कौतूहलपूर्ण चेष्टा करने लगी।

See also  श्रीकांत अध्याय 3

दोनों जब साथ-साथ भात खाने बैठीं, तब अनुपमा ने अपनी यात्रा का विचित्र वृत्तान्त बताना शुरू किया। सौदामिनी ने पलकें उठाकर सीधे अपनी माँ की आँखों में देखा…अनुपमा एकदम चुप हो गयीं। सौदामिनी के चेहरे पर उसे अनकहे-से क्षोभ के निशान नजर आये। नीचे दवाखाने में अभी भी बीमारों की भीड़ थी। रायचौधुरी को अब तक भी ऊपर आने की फुर्सत नहीं मिली थी।

एकाएक न जाने क्या हुआ। सौदामिनी हवा की गति से छूटती हुई नीचे उतर गयी। वह नीचे फर्श पर बैठ बच्चे की तरह बिलख-बिलख कर रोने लगी। अनुपमा बाहर निकल आयीं। दवाखाने की भीड़ को ठेलते हुए रायचौधुरी भी आकर उसके निकट खड़े हो गये। कुछ देर खुलकर रोने के बाद जब वह शान्त हुई तब भर्राये गले से चीख-चीख कर कहने लगी, ‘मैं दूसरे की दया पर आश्रित रहकर अपना सारा जीवन नहीं बिता सकती। मैं महान नारी नहीं हूँ कि तुम लोगों की तरह जनहितकारी काम करते हुए जीवन काट दूँ। मैं स्वाधीन हूँ। मैं किसी से नहीं डरती। तुम लोग यदि यह समझ रहे हो कि मैं बदल गयी हूँ तो यह तुम्हारी भूल है।’ रायचौधुरी की ओर उँगली दिखाकर वह चीख उठी, ‘तुम लोग पाखंडी हो। कसाई जैसे लगते हो तुम सब मुझे।’

See also  गंगा मैया भाग 6 | भैरव प्रसाद गुप्त

घायल कबूतर की तरह वह कुछ देर तड़फड़ाती रही। इसी बीच अनुपमा का भिंचा स्वर सुनाई दिया, ‘शायद वह ईसाई आने वाला है।’

इसके बाद अनुपमा के रुदन का स्वर सुनाई दिया। वह कपड़े फाड़कर देहरी पर सर पटक-पटक कर रोने लगी।

Download PDF (नीलकंठी ब्रज भाग 8)

नीलकंठी ब्रज भाग 8 – Neelakanthee Braj Part viii

Download PDF: Neelakanthee Braj Part viii in Hindi PDF

Further Reading:

  1. नीलकंठी ब्रज भाग 1
  2. नीलकंठी ब्रज भाग 2
  3. नीलकंठी ब्रज भाग 3
  4. नीलकंठी ब्रज भाग 4
  5. नीलकंठी ब्रज भाग 5
  6. नीलकंठी ब्रज भाग 6
  7. नीलकंठी ब्रज भाग 7
  8. नीलकंठी ब्रज भाग 8
  9. नीलकंठी ब्रज भाग 9
  10. नीलकंठी ब्रज भाग 10
  11. नीलकंठी ब्रज भाग 11
  12. नीलकंठी ब्रज भाग 12
  13. नीलकंठी ब्रज भाग 13
  14. नीलकंठी ब्रज भाग 14
  15. नीलकंठी ब्रज भाग 15
  16. नीलकंठी ब्रज भाग 16
  17. नीलकंठी ब्रज भाग 17
  18. नीलकंठी ब्रज भाग 18

Leave a comment

Leave a Reply