नए वर्ष में
नया नहीं कुछ
सभी पुराना है

महँगा हुआ और भी आटा
दाल और उछली
महँगाई से लड़े मगर
कब अपनी दाल गली
सूदखोर का
हर दिन घर पर
आना जाना है

सोचा था, इस बढ़ी दिहाड़ी से
कुछ पाएँगे
थैले में कुछ खुशियाँ भरकर
घर में लाएँगे
काम नहीं मिलने का
हर दिन
नया बहाना है

See also  शब्द | मुकेश कुमार

फिर भी उम्मीदों का दामन
कभी न छोड़ेंगे,
बड़े यतन से
सुख का टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ेंगे,
आखिर
अपने पास
यही अनमोल खजाना है