त्रिलोक सिंह ठकुरेला
त्रिलोक सिंह ठकुरेला

द्वार पर
प्रमुदित खड़ा है
संत जैसा नीम

जेठ के ये दग्ध दिन
हैं आग बरसाते,
नीम के नीचे पथिक
फिर प्राण पा जाते,
फुनगियों पर बैठकर
अल्हड़ हवा गाती
झूमने लगता खुशी से
कंत जैसा नीम

बाँटता आरोग्य
जब कोई निकट आता,
सामना करते हुए
हर रोग घबराता,
वैद्य जैसा
जो न कोई शुल्क लेता है
व्याधियों को काटता
अरिहंत जैसा नीम

See also  यह समय हमारी कल्पनाओं से परे है | अंजू शर्मा

नीम के संग सभ्यता का
दीर्घ किस्सा है,
नीम अपनी संस्कृति का
अमिट हिस्सा है,
हाँ, युगों से हैं,
हमारे गहन रिश्ते हैं
हर कदम पर साथ है
जीवंत जैसा नीम 

Leave a comment

Leave a Reply