मौसम कब बदला | मधु प्रसाद
मौसम कब बदला | मधु प्रसाद
रूप बदल कर मुझको मेरे
मन ने बहुत छला
ठगी रह गई समझ न पाई
मौसम कब बदला।
कभी कहा यह जग मिथ्या है
माटी का टीला
कभी कहा यह अति सुंदर है
मोहन की लीला|
खोजबीन में पड़ी रही मैं
जीवन बीत चला।
कितने-कितने मौसम आए
कितने बीत गए
लेखा-जोखा कौन किसे दे
सारे मीत गए
ऋतुओं का यूँ साथ छूटना
मुझको बहुत खला।
बाँसों के जंगल में ठहरा
हुआ मौन गहरा
चंदन पर विषधर का देखो
लगा हुआ पहरा
पुरवाई के उड़े परखचे
जो था रूप, ढला।
मौलसिरी औ’ हरसिंगार ने
रिश्ते तोड़ दिए
मलखल-सी कोमल रातों के
सपने छोड़ दिए
अगवानी का शुभ मुहूर्त लो
कैसा आज टला।