आँसुओं
आँसुओं

क्या तुम्हें आँसुओं की भाषा पढ़नी आती है 
मुझे आती है 
उदासी की लिपि ब्राह्मी से भी ज्यादा 
अबूझ हो सकती है 
लंबे इंतज़ार के बाद बोला गया एक शब्द 
आँखों में समंदर ला सकता है 
घोर एकांत में तुम्हारी आहट 
दिल को चीर के निकली एक तितली 
अनजाने जुड़ते ख्याल 
जिंदगी की लौ बदल सकते हैं 
अचानक लगने लगती है जिंदगी फीकी, बेमजा 
अचानक सब हो जाता है बेमायने 
अचानक सब कुछ सँवरने लगता है 
अचानक जाग जाता है मन 
नींद के स्वर अंतरिक्ष में बजते हैं 
आवाजें फिर निकल पड़ती हैं सफ़र पर 
मामूली सी तो बात है 
तुम नहीं मानना चाहते इसलिए बहुत बड़ी बात है फिलहाल तो यह

READ  पता पूछते | मधुकर अस्थाना

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *