औरतें -1
औरतें -1

कहाँ हैं औरतें ? 
ज़िंदगी को रेशा-रेशा उधेड़ती 
वक्त की चमकीली सलाइयों में 
अपने ख्वाबों के फंदे डालती 
घायल उँगलियों को तेज़ी से चला रही हैं औरतें

एक रात में समूचा युग पार करतीं 
हाँफती हैं वे 
लाल तारे से लेती हैं थोड़ी-सी ऊर्जा 
फिर एक युग की यात्रा के लिए 
तैयार हो रही हैं औरतें

See also  अगर तुम्हें नींद नहीं आ रही | चंद्रकांत देवताले

अपने दुखों की मोटी नकाब को 
तीखी निगाहों से भेदती 
वे हैं कुलाँचें मारने की फिराक में 
ओह, सूर्य किरनों को पकड़ रही हैं औरतें

Leave a comment

Leave a Reply