खुदा जगाए तुम सबको | प्रदीप शुक्ल
खुदा जगाए तुम सबको | प्रदीप शुक्ल

खुदा जगाए तुम सबको | प्रदीप शुक्ल

खुदा जगाए तुम सबको | प्रदीप शुक्ल

(एक गीत लहरों पर सोए हुए सीरियाई बच्चे ‘अयलान कुर्दी’ के लिए) 

इस दुनिया पर कितना रोऊँ
क्या चिल्लाऊँ मैं
सुनो, नई कविता लिक्खी है
किसे सुनाऊँ मैं

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जरा उधर देखो वो लहरें
वापस लौट रहीं
मोती वाली सीपी शायद
होगी यहीं कहीं
परियों वाले किस्से आखिर
किसे बताऊँ मैं

वहाँ जहाँ पर बच्चे घर के
बाहर खेलेंगे
तय होगा यह, सोते बच्चे
उठ कर बोलेंगे
मेरे बच्चे चलो वहीं घर
नया बनाऊँ मैं

आँखें खोलो बेटा
मछली ने आँखें खोली
पश्चिम से मछुआरों की
शायद आए टोली
खुदा जगाए तुम सबको
तो इसे जगाऊँ मैं
इस दुनिया पर कितना रोऊँ
क्या चिल्लाऊँ मैं
सुनो, नई कविता लिक्खी है
किसे सुनाऊँ मैं।

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