खोजूँ फूल खिले चटकीले
खोजूँ फूल खिले चटकीले

धूल-शूल से
भरी डगर में
खोजूँ फूल खिले चटकीले।

खिल-खिल झरतीं पुष्प-रंगोली
पाकर, आँचल पास परोसा।
झर-झर, राग-पराग परसतीं
पोसें, पालें सघन भरोसा।
पागों रंग उगो उर टूटो
उतरो हाथ, हथेली भीचे
मह-मह महकें गंध नटीले ।

करम तार में बीनूँ, तानूँ
परखूँ रूप उधेडूँ, छानूँ।
फिर-फिर बदल-बदल के बाना
नाप-जोख कर गति पहचानूँ।
पंच तत्व की गूँथी, सानी
सतरंगी परिधान सजाए
सोंधी माटी, गंध मटीले।

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काल बनाता ताना-बाना
युग-युग भटका एक फकीरा।
आराधक, पथ बढ़ती जाऊँ
फरते-झरते पहुँचूँ तीरा।
नाव तिरे पतवार सँभाले
खेऊँ जतन करूँ नित सारे
तिर पाऊँ उस पार, तटीले।

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