जेब खर्च
जेब खर्च

इनको ही रो-धोकर
गाकर आँखें भर लो
चिंताओं को
जेब-खर्च में शामिल कर लो।

लगा हुआ है
नई हवा का आना-जाना
इसकी खातिर
दिल है एक मुसाफिर खाना
जितने पल का साथ
उसी की हामी भर लो।

जैसे जमकर बर्फ गिरी हो
ऐसी बातें
ऐसी सरदी काँप गई हैं
अपनी रातें
रगड़ हथेली कुछ तो गर्मी
पैदा कर लो।

See also  कहाँ छिपकर बैठे हो

सोचो तो ये खुशियों की
तौहीनी ही है
इतने अरसे बाद यहाँ
गमगीनी ही है
पतझर या मधुमास
किसी पत्ते-सा झर लो।

Leave a comment

Leave a Reply