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पीलिया

शहर को कुछ हो गया हैपीलिया-सा। आँखों में भी रंग हैउसका सजीलायह नहीं किझूठ का है रंग पीलारह रहा है सबमें कोईभेदिया-सा। आदतों में इक मशीनीहै कवायदआदमी से चेतना कीगंध गायबचेहरे में है कोईबहुरूपिया-सा। खोखलापन ढो रहे हैंशब्द केवलहम रोजाना सुर्खियों मेंपी रहे छलखींचती है रोज चुप्पीहाशिया-सा।