जाहिर है ऐसा ही चलता आ रहा है जमाने से –
पगला जाते हैं हम तीस बरस से पहले-पहले
हम अपाहिज ज्यादा जोर से
जोड़े रखते हैं रिश्ता जिंदगी से।
प्रिय, जल्द ही मैं भी हो जाऊँगा तीस का
दिन-ब-दिन प्रिय लग रही है यह धरती
इसीलिए सपनों में देखता है दिल
कि जल रहा हूँ मैं गुलाबी आग में।
जलना ही है तो जल लूँगा पूरी तरह
लाइम वृक्ष के फूलों के बीच मैंने
तोते से छीनी है यह अँगूठी –
हम दोनों के साथ जल जाने का संकेत।
यह अँगूठी पहनाई थी मुझे एक बंजारन ने
अपने हाथ से उतार कर मैंने वह तुझे दी
पर अब जब उदास पड़ा है बाजा
रहा नहीं जा रहा कुछ सोचे शरमाये बिना।
बहुत गहरी है दिमाग की दलदल
और हृदय में है पाला और अंधकार :
संभव है तुमने किसी दूसरे को
पहना डाली हो वह अँगूठी।
संभव है सुबह तक चूमते हुए
वह स्वयं तुझसे पूछता होगा –
किस तरह हास्यास्पद मूर्ख कवि को
पहुँचाया तूने कामूक कविताओं तक।
ठीक है, तो क्या! भर जायेगा यह घाव भी
पर दुख होता है जीवन का अंत देख कर।
जिंदगी में इस अड़ियल कवि ने
किसी तोते से धोखा खाया है पहली बार।