अपनी कविता | प्रेमशंकर शुक्ला
अपनी कविता | प्रेमशंकर शुक्ला

चाहता हूँ
अपनी कविता में
अहसास भर प्रेम लिख दूँ
लिख दूँ अपना विश्वास
जो गहरी टूटन में भी
काया के अँधेरे में हिलगा रहता है

उस बुजुर्ग के अनुभव लिख दूँ
जो हर रोज बिना पूछे ही कुछ बताता रहता है
और वह हमारे बड़े काम का है

लिख दूँ अपनी कविता में –
नमक का नमकपन और हल्दी की पीलिमा
जो पीढ़ियों से अपने स्वभाव में हैं
जबकि मनुष्य –
मनुष्य-स्वभाव से छूट रहा है

योजनाकारों की फाइलों से कटे हुए हैं जो दुख
उन्हें उतना ही तीखा लिख दूँ
जितना लोग भोग रहे हैं
कोस रहे हैं समय को
जैसे जितना लोग
चाहता हूँ
उसे उसी तरह उतार लाऊँ
पर सफल नहीं होता किसी भी तरकीब से

कविता में जितना कह पाता हूँ
रह जाता हूँ उससे अधिक
बिना कहे ही।

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