हीरो | इला प्रसाद
हीरो | इला प्रसाद

हीरो | इला प्रसाद – Hero

हीरो | इला प्रसाद

गार्बेज डिस्पोजर खराब है!

वह कई बार रवि से कह चुकी है। आज फिर याद दिलाया।

‘मैंने जिम से कह दिया है। वह किसी समय आकर ठीक कर देगा।’ रवि ने कार स्टार्ट करते हुए कहा।

कला परेशान हो गई।

‘कब आएगा?’

‘कहा न, जब समय मिलेगा। सिर्फ तुम्हारे ही तो काम नहीं करने उसे।’

‘नहीं, मैं इसीलिए पूछ रही हूँ कि यदि तुम उस समय घर पर रहते तो अच्छा होता। मुझे उसकी अंगरेजी बिल्कुल समझ में नहीं आती।’

रवि नरम पड़े, ‘उसे कह दिया है कि जब आए तो मुझे सेल फोन पर सूचित कर दे, मैं आ जाउँगा।’

‘लेकिन किसी और को भी तो कह सकते थे? तब तक बैठी रहूँ?’

‘तुम जिम से इतना चिढ़ती क्यों हो? वह ब्लैक है, इसीलिए?’

‘वह बहुत गंदा रहता है। जब काम करके जाता है, मुझे पूरा रसोईघर साफ करना पड़ता है।’

‘तो तुम चाहती हो कि तुम्हारा गार्बेज डिस्पोजर ठीक करने के लिए वह सूट पहन कर आए?’

कला बौखला गई, अच्छा-सा जवाब देना चाहती थी, लेकिन कार तब तक ड्राइव वे से बाहर हो चुकी थी।

यह झगड़ा पुराना है।

यहाँ काले, पीले, गोरे, भूरे, सब तरह के लोग हैं और रवि की दुनिया में इन सब का प्रतिनिधित्व है। रवि की चीनी महिला एजेंट से उसकी दोस्ती है। मेक्सिकन पार्टनर को वह भारतीय खाने खिला-खिला कर वाहवाही लूटती है। अमेरिकन गोरे मित्र से हँसकर बात करती है और कारपेट लगाने वाला रोनाल्डो भी उसे बुरा नहीं लगता। कला को किसी से शिकायत नहीं सिवाय प्लंबर जिम के। ऊँचा-पूरा आदमी, लंबाई छह फुट, हट्टा- कट्टा। जब आएगा, दूर से ही उजले दाँत दिखाता हुआ, जो उसके काले चेहरे पर गजब का विरोधाभास पैदा करते हैं। कपड़े हमेशा गंदे। अमेरिका में जूते खोल कर घर में घुसने का रिवाज नहीं, सो वह अपने गंदे भारी बूट पहने पहने रसोई में घुस आता है। इस बात के लिए भी वह कई बार रवि से बहस कर चुकी है लेकिन, रवि कहता है कि हिप की समस्या के कारण उसके लिए बार-बार जूते खोलना-पहनना कठिन है। सो भुगते कला!

और फर्श भी कैसे-कैसे हैं यहाँ। ‘वाइनल टाइल है,’ – पहले ही दिन सुनने को मिला – ‘पानी मत गिराना। उखड़ जाएँगे।’

‘तो साफ कैसे करूँगी?’

‘यह केमिकल है, इससे।’ रवि ने पाइन क्लीनर की बोतल पकड़ा दी थी।

उसी से वाइनल टाइल के फर्श को रगड़-रगड़ कर साफ करना पड़ता है कला को, जिम के जाने के बाद। जमीन पर लेटकर वह काम करेगा और पूरी आकृति उभर आएगी जमीन पर। इतना गंदा आदमी!

उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। रवि भी निर्विकार। बस कला चिढ़ती रहती है।

जाने कहाँ से मिल गया…!

कहाँ से मिला यह कोई रहस्य भी नहीं। थैंक्स गिविंग की उन छुट्टियों में वह रवि के साथ ही थी। अमेरिका में उसकी पहली थैंक्स गिविंग। साल भर में मिलनेवाली तमाम छुट्टियों में सबसे लंबी। वह खुश थी पूरे सप्ताह भर के लिए रवि का साथ पाकर। तब हर एहसास नया था। हर जानकारी नई। अंदर ही अंदर एक अनजानी खुशी-सी फूटती रहती। विवाह के बाद वह पहली बार रवि के साथ जो थी, पूरे एक साल के इंतजार के बाद। रवि की छोटी-बड़ी आदतों, जरूरतों और कामों से परिचित हो रही थी। उनके साथ घूमती हुई पुलक से भर जाती। रवि को भी खूब अच्छा लगता था, उसका बनना-सँवरना। अपने साथ घुमाते रहते। पिक्चर देखकर लौटते हुए रवि को याद आया कि रास्ते में रुककर अपने खाली अपार्टमेंट को देखते चलें। कितना काम हुआ है, कितना बचा हुआ है। हर किराएदार के जाने के बाद नए सिरे से पेंट कराना, कारपेट बदलवाना तो नियमतः जरूरी है, वह उसे बतला रहे थे। रात हो चुकी थी। नवंबर की कड़ाकेदार ठंढ। वह सिकुड़ती हुई रवि के साथ ऊपर चढ़ी और पूरे अपार्टमेंट का चक्कर लगाकर वापस सीढ़ियों के नीचे आ खड़ी हुई। सामने के अपार्टमेंट में रह रहा रेमंड रवि से मिलने चला आया।

‘वाश बेसिन से पानी बाहर रिस रहा है। तुम किसी प्लंबर को जानते हो?’ रवि ने पूछा।

‘हाँ और क्या, मेरा बाप है न। वो कर देगा।’

‘ठीक है, कल जब आऊँ तो मिलवा देना।’

रवि अपार्टमेंट में ताला लगाने लगे। वह नीचे उतर आया।

कला के ठीक सामने खड़ा होकर पूछने लगा, ‘सो हाउ वाज थैंक्स गिविंग?'(कैसी रहीं थैक्स गिविंग की छुट्टियाँ?)

‘हे, शी इज माय वाइफ।’ (वह मेरी पत्नी है।) रवि ने ऊपर से पुकार कर कहा।

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कला की समझ में कुछ नहीं आया। रेमंड एकदम से चुप। रवि के नीचे उतरते ही हाथ मिला कर चला गया।

‘आपने ऐसे क्यों कहा?’ कार में बैठते हुए वह बोली।

‘वह तुम्हें मेरी गर्लफ्रेंड समझ रहा था।’

‘तो क्या हुआ? मैं हूँ न तुम्हारी गर्लफ्रेंड।’ वह ठुनकती हुई बोली।

रवि ठहाका लगाकर हँस पड़े।

आज वह समझती है। किसी से भी मिलते ही परिचय देती है, ‘आय’म रवि’ज वाइफ (मैं रवि की पत्नी हूँ)’ और महसूसती है सामनेवाले की निगाहों का फर्क। चकित होती है कि अमेरिका के वर्जनाहीन समाज में भी यह मायने रखता है। सम्मान पत्नी के ही हिस्से में आता है। वैवाहिक जीवन में स्थायित्व दुर्लभ वस्तु हो गई है, शायद इसलिए भी। वह रवि की पत्नी है, कित्ती बड़ी बात…!

और यह जिम, रवि के अपार्टमेंट्स का काम देखते-देखते कब उनके घर में घुस आया, न कला को ठीक याद है, न रवि को। गार्बेज डिस्पोजर शब्द भी उसके लिए नया था तब। खाना बनाती। कुछ तो बचता ही। कला जाकर यार्ड में फेंक देती, ‘गिलहरी खाएगी।’ लावारिस कुत्ते हैं नहीं, भिखारी आपसे डॉलर लेंगे, लेकिन खाना नहीं, घर का पका खाना खाने को यार्ड में रहनेवाली मोटी गिलहरी ही तो बची न ! लेकिन उसे भी कला का पकाया खाना पसंद नहीं। पड़ा रह जाता। रवि हँसता – ‘अमेरिकन गिलहरी है। पिज्जा खाती है।’

वह खीझती। लेकिन धीरे-धीरे सारा कुछ रसोईघर के वाश बेसिन में डाल स्विच दबाने की आदत हो गई। गारबेज डिस्पोजर बेसिन के अंदर घूमता और सारा कुछ पानी के साथ घुल-मिलकर बाहर निकल जाता। जब-जब गारबेज डिस्पोजर खराब हुआ, जिम आकर ठीक कर गया या बदलने की जरूरत है तो रवि के साथ ही होम डिपो जाकर खरीदा और बदल कर चला गया। नल खराब हुए, तब भी वही। और हर बार का कला का खीझना भी वही। कुछ नहीं बदला है, इन चार सालों में उसके लिए। हालाँकि जिम की जिंदगी में काफी कुछ बदल चुका। उसकी पत्नी कैंसर से मर चुकी। उसकी नई, साँवली आकर्षक गर्लफ्रेंड आई उसके जीवन में और अब तो पता नहीं क्या चलता है उन दोनों के बीच। अगर किसी से नाराजगी हो, तो शिकायतों की पूरी फाइल खुल जाती है मष्तिष्क में।

‘आगे से फोन करे तो सुनना मत।’

‘अच्छा-अच्छा।’ रवि फोन पर हँस रहा है।

‘किससे बात कर रहे हो?’ वह पूछती है।

‘जिम से। कह रहा है लिंडा फोन करे तो बात मत करना।’

‘क्यों, क्या हुआ?’

रवि ने फोन उसे पकड़ा दिया।

‘हाई, हाऊ आर यू?’ वह जिम से पूछती है।

‘लिंडा से बात मत करना।’

‘क्यों, क्या हुआ? मुझे तो लगता है वह अच्छी औरत है। उसने तुम्हें इनसानों की तरह रहना सिखा दिया है।’

‘नो, शी यूज्ड मी।'(नहीं, उसने मेरा फायदा उठाया है)

कला ने वापस फोन रवि को पकड़ा दिया।

बेकार है इस आदमी से बात करना। सचमुच वह औरत अच्छी है। जब से उसका साथ मिला यह इनसानों की तरह जीने लगा था। वह तो चकित रह गई थी, साफ-सुथरे नए-से दिखते कपड़ों में उसे अपने घर पर पाकर। एक दिन अचानक ही वह उन्हें अपनी गर्लफ्रेंड से मिलवाने चला आया था। पहले से कम मोटा, चेहरे पर एक शांति, कोमलता का भाव जो उस व्यक्ति के चेहरे पर आता है जिसने प्यार पाया हो और संतुष्ट हो उससे। वरना कैसा उखड़ा-उखड़ा, जंगली-सा भाव था पहले। ‘खुश है यह।’ उसने रवि से कहा था।

‘तुमने कैसे जान लिया?’

‘इसमें क्या जानना? शकल पर लिखा है।’

‘अच्छा, अब समझ में आया। इसीलिए तुम लड़कियों-लड़कों को इतनी आसानी से बुद्धू बना लेती हो। शकल पढ़ना जो आता है।’

वह हँसी। रवि की मजाक करने की आदत पुरानी है।

फिर अगली बार जब जिम काम पर आया तो लिंडा के साथ आया। लिंडा ने हर काम में उसका साथ दिया। दोनों ने मिलकर कला के घर में नया पेंट किया। जिम ने पानी की बोतल तक नहीं ली उनसे। उसकी गर्लफ्रेंड सारा इंतजाम कर साथ आई थी। सलीके वाली है। कला ने सोचा। बात करने से लेकर हर काम कायदे से करती है। जिम को सुधार देगी यह। पूरी तरह। और यह जिम भी कैसा आत्म-गौरव से भरा रहता है आजकल। अपने आप पर मुग्ध हो जैसे। एक प्यार करने वाली स्त्री का साथ इनसान में कितना आत्मविश्वास भर देता है।

लेकिन दो ही महीनों में यह अचानक क्या हुआ!

‘कहता है, उसने मुझे यूज किया। मेरा फायदा उठाया है केवल।’

‘क्या फायदा उठाया?’

‘वह अपनी पहली शादी से हुए बच्चों को भी अपने साथ रखेगी। उन्हें घर पर ले आई है।’

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‘और जिम जो खुद अपनी पहली पत्नी के बच्चों को साथ रखे हुए है।’

‘उसे नौकरी नहीं है। जिम की पेन्शन है।’

‘तो यह यूज करना हुआ।’ कला ने माथा ठोंक लिया। ‘हर जगह पैसा। हर रिश्ते को ये पैसों से क्यों तोलते हैं? सारी संवेदनाएँ ही मर गई हैं जैसे। अरे, वह इतना कुछ करती है तुम्हारे लिए तो वह ठीक है लेकिन अपने बच्चों को साथ रखना चाहती है तो फायदा उठा रही है तुम्हारा।’

रवि चुप हो गया, लेकिन बाद में शायद उसने यह बात जिम से कह दी थी। कुछ समय बाद पता चला, लिंडा अब भी उसकी गर्लफ्रेंड है और वे अलग घरों में रह रहे हैं। लिंडा को ‘व्हाट-अ-बर्गर’ में नौकरी मिल गई है। अब सब ठीक चलेगा – कला ने सोचा।

लेकिन कुछ महीनों बाद फिर वही। इस बार लिंडा का फोन था। ‘मैं किराए पर तुम्हारा घर लेना चाहती हूँ। जिम को कुछ बताने की जरूरत नहीं।’ अपार्टमेंट खाली ही था। रवि को लगा ठीक ही है। दो मिनट बाद फोन की घंटी फिर से बजी। यह जिम था, ‘लिंडा को अपार्टमेंट मत देना।’

‘क्यों, क्या हुआ? अपनी लड़ाई में मुझे क्यों घसीटते हो?’

‘कल रात मैं उससे मिलने गया था। उसके बेटे ने मुझ पर गोली चलाई।’

‘क्यों?’

‘वह आजकल दूसरे के साथ घूमती है। मैंने मना किया था तो मुझसे ही लड़ गई।’

‘तुम उस पर इतना हक क्यों जताते हो? वह तुम्हारी बीवी तो नहीं?’

दूसरी ओर से फोन रख दिया गया।

रवि ने लिंडा को अपार्टमेंट दे दिया। जिम ने उसे वहाँ व्यवस्थित होने में सहायता की। एक बार फिर शांति हुई। इस बीच लिंडा की अठारह साला बेटी जो कॉलेज में पढ़ रही थी, माँ बन गई थी और अपने बच्चे के साथ लिंडा के पास ही रह रही थी। उसका ब्वायफ्रेंड उससे अलग रहता था। सरकार की तरफ से जो सहायता राशि बच्चों के लिए मिलती थी वह सारे परिवार के लिए पर्याप्त थी। कला को यह सब विचित्र लगता था। अब वह कभी भी जिम के मामले में दिलचस्पी नहीं दिखाती। जो सकारात्मक दृष्टिकोण पिछले दिनों पैदा हुआ था, वह उसकी जीवन-शैली को देखकर फिर से बदल गया था।

लेकिन आज फिर से उसे झेलने के लिए कला को तैयार रहना है। वह फिर से वैसा ही हो गया है। गंदे बूटों से चलता हुआ आएगा। वह रवि के विदा होते ही बाथरूम में नहाने घुस गई। माथे पर ठंडा पानी डालो, उसने अपने आप से कहा, गुस्सा उतर जाएगा। शावर में पानी नहीं आया तो नीचे नल का हैंडिल घुमाया, जोर से, और नल का हैंडल टूट कर हाथ में आ गया। इसमें भी जंग लग गया था, कब से रवि से कह रही थी, नल बदलवा दो। साल भर पहले जब पिछली बार जिम आया था तभी कहा था। लेकिन साफ कपड़ों में सजे-धजे जिम को लिंडा के सामने भाव जो मारना था। नहीं किया। टाल गया, अगली बार पर। अब?

वह देर तक बौखलाई हुई, बाथटब में पानी भरता देखती रही। टूटे नल की तेज धार। नहाना तो यूँ ही हो गया। कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे। नल के बंद होने का सवाल नहीं था। कपड़ा ठूँसे और पानी बंद हो जाए – यह भारत में होता है। यहाँ यह तरकीब नहीं चलने वाली। घबराकर रवि को फोन किया।

‘बगीचे में जाकर मेन पाइप का नल बंद कर दो।’

‘लेकिन इस तरह तो पूरे घर का पानी बंद! खाना कैसे बनेगा? बाथरूम कैसे जाऊँगी? जिम कब आएगा?’ सारे सवाल एक साँस में बाहर आ गए।

‘दो बालटियाँ भर कर रख नहीं सकतीं?’ उधर से झुँझलाया स्वर आया।

अपना दिमाग भी पूरा ट्यूबलाइट है। वह खुद पर झुँझलाई। इतना तो कर ही सकती है।

‘रख लूँगी।’ वह शांत स्वर में बोली।

‘जिम आज नहीं आ सकता। वह व्यस्त है। मैं शाम को आकर देखूँगा।’

‘ओके।’

तपती धूप में कला बाहर अहाते में गई। वातानुकूलित घर से बार-बार निकलना बहुत कष्टप्रद लग रहा था लेकिन कोई और रास्ता भी नहीं था। गई, एक बार नल बंद करने, फिर खोलने, फिर बंद करने। यह सिलसिला चला। बाल्टी भर पानी भर कर बाथरूम में रखा, एक बाल्टी रसोई में। फिर खाना पकाया गया। न डिश वाशर चला, न वाशिंग मशीन। पानी नहीं था। नल बंद रखना था।

एक गारबेज डिस्पोजर से शुरू होकर बात कहाँ तक पहुँची – वह सोच रही थी – लेकिन कोई बात नहीं, चलो सब एक ही बार में ठीक हो जाएगा।

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साँझ ढले रवि लौटे तो काफी अच्छे मूड में थे। ‘तुम झूठ-मूठ परेशान हो जाती हो। जिम कल आ जाएगा। लाओ मैं नल सील कर देता हूँ तब तक के लिए।’

वह डर गई, ‘ना, कुछ मत करो। और बिगड़ गया तो?’

रवि ने बाथटब का नल देखा। बंद करने की कोशिश की। ‘अब बाहर अहाते में जाकर मेन पाइप का नल खोलो।’

कला ने यंत्रवत अहाते की राह ली।

वापस आई तो बैठक में पानी भर रहा था और इस सबसे बेखबर रवि बेड रूम से जुड़े बाथरूम के बाथटब में बैठे टूटे नल को बंद करने की कोशिश में जुटे हुए थे।

‘कुछ पता है, लिविंग रूम में पानी आ रहा है।’

‘क्या? बंद करो मेन पाइप।’ वह फिर से बाहर दौड़ी।

‘कुछ नहीं हो सकता!’ दोनों हार कर बैठ गए।

‘जिम को बुलाओ न।’ वही बोली कुछ देर बाद।

‘इतनी रात गए? वह आएगा?’

वह चुप हो गई।

अगला दिन भगवान की दया से शनिवार। जिम कहकर भी नहीं आया। बाहर के कमरे में इस तेजी से पानी रिसता था कि दोनों ने नहाने से तौबा की। खाना बाहर खा लिया गया।

इस बीच रवि ने दो-चार फोन कॉल किए। कहीं बात नहीं बनी। छुट्टी का दिन। कोई नहीं मिलने वाला।

‘कल तो रविवार है। कल भी कोई नहीं मिलेगा।’ कला मायूस हो गई। ‘बिना नहाए कोई कितने दिन रह सकता है। फिर बाथरूम में पानी चाहिए ही। जितनी बार नल खोलो, उतनी बार लिविंग रूम में भरा पानी साफ करो।’

‘जिम कह रहा है, कल आकर देख सकता है।’

कला की जान में जान आई।

सुबह होते ही वह रवि के पीछे। ‘जिम को फोन करो न।’

रवि ने फोन मिलाया, कुछ दस बजे, और फिर परेशान स्वर में बोले, ‘उसकी गाड़ी खराब हो गई है। वह मिजोरी सिटी में अटका पड़ा है।’

‘ओह!’

‘कहता है, गाड़ी ठीक कर रहा है। ठीक होते ही आएगा।’

दूरियाँ और दूरियाँ! केवल कार चलेगी सड़कों पर। इतने लंबे रास्ते पाँवों से तो नापे जा सकते नहीं।

शाम होते-होते कला झुँझला गई। पूरा दिन इंतजार में गुजारा। न पकाया, न खाया कायदे से। बचा-खुचा जो फ्रिज में था, वही चला आज। दो दिन हो गए। नहाई नहीं हूँ। चाहे घर एयर कंडीशंड हो, बिना नहाए मन कैसा-कैसा लगता है।

‘आज संडे को चर्च जाते हैं। काम नहीं करते। या फिर दो किसी को दो सौ डॉलर। आकर कर जाएगा तुम्हारा काम।’

‘एक नल लगाने के दो सौ डॉलर?’

‘हाँ, तो संडे है, मैडम। स्पेशल प्लंबर आएगा तो स्पेशल चार्ज भी लेगा।’

वह चुप हो गई।

रात आठ बजे जिम का फोन आया। उसकी गाड़ी ठीक हो गई है। लेकिन दिन भर गाड़ी के पीछे लगे रहकर वह थक गया है। कल आएगा।

‘प्लीज, उससे बोलो न।’ कला ने रवि की चिरौरी की।

‘मेरी वाइफ कह रही है कि अगर आज रात तुम आ सको, तो तुम हीरो हो।’

‘बहुत देर हो गई है। आने में ही दस बज जाएँगे। फिर बारह बजे रात से पहले मैं घर वापस नही पहुँच पाऊँगा।’ उधर से जवाब आया।

रवि ने कला को देखा। उसे लगा, वह रो देगी।

‘तुम बस आ जाओ। हम दोनों दो दिनों से नहा नहीं पाए हैं। नल किसी तरह सील कर दो तो बाथरूम जा सकेंगे। लिविंग रूम में पानी नहीं भरेगा। बाकी के काम तुम अगले दिन कर देना।’ रवि ने स्थिति स्पष्ट की।

फिर जोड़ा, ‘मेरी वाइफ कह्ती है अगर आज तुम आ गए तो यू आर अ हीरो।’

वह हँसा, ‘आता हूँ।’

देर रात गए वह आया, तब कला की आँखें नींद से मुँद रही थीं। आधे सोते, आधे जागते उसने जाना कि जिम ने बाथटब का नल सील कर दिया। अहाते का मुख्य नल अब बंद नहीं है। वह बाथरूम जा सकती है। जिम ने वह किया जिसके लिए वह उसे हीरो की संज्ञा देने के लिए तैयार थी।

जिम जा रहा है।

रवि ने सूचना दी, ‘कल सुबह आएगा। तब गारबेज डिस्पोजर, बाकी के नल सब ठीक करेगा। मैंने उसे अभी के लिए चालीस डॉलर दे दिए हैं।’

वह बिस्तर से उठी। बाहर आई। लिविंग रूम में वह खड़ा था – काले चेहरे पर सफेद दाँतों से मुसकराता, आज और ज्यादा गंदे कपड़ों और भारी बूटों में छड़ी का सहारा लिए खड़ा जिम!

वह कृतज्ञता से भर उठी! रुँधे गले से बोली – ‘थैंक यू जिम।’

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