कथा एक खास सुई की | इसाक बशेविस सिंगर
कथा एक खास सुई की | इसाक बशेविस सिंगर

कथा एक खास सुई की | इसाक बशेविस सिंगर – Katha Ek Khas Suee Ki

कथा एक खास सुई की | इसाक बशेविस सिंगर

मेरे प्यारे लोगों, आजकल सारी शादियाँ श्रीमान प्यार के माध्यम से ही तय होती हैं। जवान जोड़े घूमते फिरते हैं, प्यार के बंधन में बंध जाते हैं। थोड़े दिन बाद से ही लड़ाई झगड़े शुरू हो जाते हैं और फिर एक दूसरे से नफरत करने लगते हैं। मेरे समय में माता पिता और शादी तय करने वाले बिचौलिये के निर्णय पर ही भरोसा किया जाता था। मैंने भी तो अपने टोडी को शादी के बाद ही देखा था।

चलो! इसी बात पर तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ। रूबशॉ शहर में रेब लेमेल वेगमेइस्टर नाम का एक बेहद अमीर आदमी रहता था। उसकी पत्नी, एस्थर रोज़ा, बहुत सुंदर थी और अपने बालों के ऊपर हमेशा एक काली लेस का दुपट्टा ओढ़े रहती। गोरी चिट्टी, काली आँखों वाली एस्थर रशियन, पोलिश, जर्मन और शायद फ्रेंच भाषा की भी जानकारी रखती थी, पियानो भी बजाती थी।

उनका एक ही बेटा था, बेन ज़ायोन। माँ-बेटा स्वभाव और पसंद-नापसंद के मामले में एकदम दो बूँदों के समान – एक जैसे।

बेन आकर्षक लिबास में जब भी शाम को घूमने निकलता, तो उसका गोरा रंग, काले बाल और स्वस्थ कद-काठी देखकर जवान लड़कियाँ दिल थाम कर रह जातीं और खिड़कियों के पीछे छिप कर उसे ताकतीं। अकूत संपत्ति का अकेला वारिस, घर का काम काज देखने के लिए अनेक कार्यकर्त्ता थे, लिहाजा एस्थर अपने बेटे के लिए दिन भर एक अच्छी बहू लाने के ख्वाब देखती। कोई लड़की सुंदर नहीं लगती थी तो कोई बुद्धिमान नहीं थी। आधे पोलैंड की सुंदर लड़कियों में कोई न कोई कमी निकाल कर एस्थर कुछ खास गुण वाली कन्या ढूँढ़ने के फिराक में थी।

“मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे बेंजी को सताए। अगर औरत रूखी और बदजुबान होती है तो पति को ही जिंदगी भर का दुख झेलना पड़ता है।”

उन्नीस वर्षीय बेन की सगाई नहीं हुई थी। उन दिनों के हिसाब से बेन बूढ़ा हो चला था। उसके के पिता का कहना था कि माँ की मीन-मेख निकालने की आदत की वजह से लड़का शायद कभी शादी ही न कर पाए।

एक दिन एस्थर ने मुझसे कहा, “ज़ेलडेल, क्या तुम मेरे साथ जामोस्क चलोगी?”

“वहाँ मैं क्या करूँगी?” मैंने पूछा।

“उससे तुम्हें क्या! तुम मेरी मेहमान बनकर रहोगी।” एस्थर बोली।

एस्थर की निजी घोड़ागाड़ी थी पर आज वह साधारण गाड़ी में यात्रा कर रही थी। शानदार कपड़े छोड़ कर सादे कपड़े पहने थी और महँगी लेस के दुपट्टे की जगह मामूली स्कार्फ ओढ़े हुई थी। जरूर बहू की तलाश में उसने अपना वेश बदला होगा पर एस्थर से कौन पूछ सकता था। मन होगा तो बताएगी नहीं तो निशब्द चुप्पी। मैं तो क्या, किसी की भी पूछने की जुर्रत नहीं होगी!

रास्ते में उतर कर, हम दोनों बेरिश लुबलिनर की मशहूर दुकान पर चल कर पहुँचे। उस स्टोर में सब कुछ उपलब्ध था – सुई, धागा, स्वेटर बनाने के लिए ऊन और तमाम तरह का रोजमर्रा का सामान। स्टोर के एक कोने में एक व्यक्ति, जो शायद दुकान का मालिक था, बहीखाते में हिसाब लिख रहा था। दूसरे छोर पर बने काउंटर के पीछे एक लड़की खड़ी थी। उसकी आँखों में जैसे एक ज्वाला धधक रही थी।

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“आप लोग यहाँ अजनबी हैं? मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ?”

“हाँ! हम बाहर से आए हैं”, एस्थर ने कहा।

“क्या दिखाऊँ आपको?”

“एक सुई”, एस्थर बोली।

जैसे ही एस्थर ने सुई की फरमाइश करी, लड़की आग बबूला हो गई।

“दो औरतें और एक सुई?”, उसने तंज किया।

लड़की की नाराजगी एक तरह से सही थी| सुबह सुबह बोहनी के समय अगर कोई ग्राहक सिर्फ सुई की माँग करे तो व्यापारियों का मानना था की पूरे हफ्ते अपशकुन होता है। हाँ, अगर सुई के अलावा साथ में बटन, धागा इत्यादि भी हो तो व्यापार में कोई नुकसान नहीं होगा।

“हाँ, पर मुझे केवल एक सुई ही चाहिए”, एस्थर रोज़ा जैसे अड़ गई थी। लड़की ने सुई का एक पूरा डब्बा सामने रख निकाल कर दिया।

“कुछ और सुइयाँ भी होंगी तुम्हारे पास”, एस्थर ने आग्रह किया।

“इनमें क्या खराबी है?” लड़की ने खिसिया कर कहा।

“इनके छेद छोटे है। मुझे धागा डालने में दिक्कत महसूस होगी।”

“मेरे पास यही है”, लड़की ने गुस्से में तमतमाते हुए कहा, “अगर आप देख नहीं सकती तो अपने लिए चश्मा क्यों नहीं बनवा लेतीं?”

एस्थर रोज़ा भी टस से मस नहीं हुई।

“क्या तुम दावे के साथ कह सकती हो कि और सुई नहीं हैं?”

इस बार लड़की ने दूसरा डब्बा काउंटर पर लगभग पटक कर दिखाया।

“अरे! इन सुइयों में भी धागा मुश्किल से डलेगा”।

इस पर लड़की ने डब्बा अपनी ओर खींच कर चिल्लाते हुए कहा, “आप लुबलिन जा कर अपने लिए खास सुई कि फरमाइश क्यों नहीं करती हैं?”

इस बात पर स्टोर में खड़ा मालिक हँसकर बोला, “लगता है आपको जूट का बोरा सिलने के लिए मोटी सुई चाहिए।”

लड़की ने चीख कर कहा, “हिम्मत तो देखो, धेले भर के पैसे के लिए इतना नखरा दिखते हैं लोग।”

एस्थर रोज़ा ने लड़की को परख लिया था। मेरी ओर देख कर एस्थर ने कहा, “चलो ज़ेलडेल! न तो मुझे रूखा बोरा सिलना हैं न ही बोरे जैसी रूखी लड़की झेलनी है।”

चलते समय लड़की ने पीछे से जोर से कहा, “कैसे कैसे गँवारों से पाला पड़ता है। अच्छा हुआ मुक्ति मिली।”

स्टोर में जो भी हुआ, मुझे अच्छा नहीं लगा। मुँह का स्वाद कसैला सा हो गया।

एस्थर रोज़ा पर जैसे इस बार पक्की तरह से बहू ढूँढ़ने का भूत सवार था। इस बार उसने रेब ज़ेलिग इबित्ज़ेर के स्टोर में धावा बोला। पहले वाले स्टोर के मुकाबले यह दुकान छोटी थी। यहाँ भी एक लड़की काउंटर के पीछे थी, लाल-लाल बाल, हरी आँखों वाली, प्यारी लेकिन चेहरे पर छिटके थे कई छोटे, बड़े तिल। एस्थर रोज़ा ने वही सवाल करने शुरू किए।

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“क्या सुई मिलेगी?”

“जवाब मिला, “जी हाँ! हम सब प्रकार की चीजें बेचते हैं!”

“मुझे बड़े छेद वाली सुई चाहिए क्योंकि मुझे साफ दिखाई नहीं देता।”

“मैं आपको सभी तरह की सुइयाँ दिखा देती हूँ, जो आपको ठीक लगे, आप ले लीजिएगा।”

एक चोर की तरह मेरा दिल धड़क रहा था। लड़की एक साथ दस डब्बे लेकर आई और बोली, “अरे! आप खड़ी क्यों हैं? यह स्टूल लीजिए और कृपया बैठ जाइए।”

एस्थर ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “यह क्या? डब्बे में सारी सुइयाँ तो मिली जुली रक्खी हैं!’

मुझे पता था एस्थर इस लड़की के भी सब्र का इम्तिहान ले रही थी।

“जब कारखाने से सुइयाँ आती हैं तो अलग होती हैं पर ग्राहकों को दिखाने में सब धीरे धीरे मिल जाती हैं।”

“यहाँ अँधेरा है, मुझे ठीक से दिखाई नहीं दे रहा” एस्थर ने फिर कोई नुक्स निकाला।

“लाइए! मैं आपका स्टूल उजाले की ओर रख देती हूँ”, लड़की ने बिना किसी झुँझलाहट के कहा।

“कौड़ी के मोल की सुई के लिए तुम इतनी मेहनत क्यों कर रही हो?”

लड़की ने जवाब में कहा, “तालमुद में कहा गया है कि चाहे कौड़ी के मोल का सामान हो या लाखों का, उसूल एक ही होना चाहिए यानी कि ग्राहक की खुशी सर्वोपरि होनी चाहिए। देखिए न! आज आप एक सुई के लिए आई हैं, कल शायद आप दहेज के लिए महँगा साटन का कपड़ा खरीदने आ जाएँ?”

“अच्छा! अगर ऐसी बात है तो बेरिश लुबलिनर के स्टोर के मुकाबले यहाँ तो कोई दिखाई नहीं देता। वहाँ तो भीड़ लगी रहती है”, एस्थर ने जान कर दिल दुखाने वाली बात करी।

लड़की गंभीर हो उठी, मुझे लगा एस्थर हद से ज्यादा रुखाई से पेश आ रही थी।

“सब कुछ ईश्वर की कृपा से होता है”, लड़की ने उसी शांत भाव से उत्तर दिया।

एस्थर अपना स्टूल उठाने के लिए आगे बड़ी।

“नहीं! रहने दीजिए। मैं रख दूँगी। आप तकलीफ मत कीजिए”

“रुको! मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ!”, एस्थर ने लड़की को रोक कर कहा।

“आप क्या कहना चाहती हैं?”, घबरा कर लड़की ने स्टूल पर बैठते हुए कहा।

“मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूँ!”

लड़की का रंग खड़िया की तरह सफ़ेद हो गया। घबरा कर बोली, “मैं समझी नहीं?”

“तुम मेरी बहू बनोगी”, एस्थर ने प्यार से कहा, “मैं रूबशॉ के मशहूर रेब लेमेल वेगमेइस्टर की पत्नी हूँ और यहाँ सुई ढूँढ़ने नहीं, बल्कि अपने एकलौते बेटे के लिए बहू ढूँढ़ने आई थी। अभी रेब बेरिश की जो लड़की मैंने देखी, वह निहायत ही असभ्य और एक खुरदुरे पावदान जैसी थी। तुम रेशम सी कोमल हो। तुम ही मेरे बेंजी की बहू बनोगी। अपना सर झुकाओ! बेटी, मैं तुम्हें यह माला पहनाना चाहती हूँ। यह तुम्हारी सगाई की निशानी है।”

लड़की के माता पिता को जब सगाई की खबर मिली तो वह भागते हुए स्टोर में आए। वातावरण में बधाई और खुशी के संदेश गूँजने लगे। किसी ने रेब बेरिश की लड़की, इट्टी, को भी सगाई का संदेश दिया वह दुख के मारे फूट फूट के रो पड़ी।

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एस्थर ने अपने बेटे की शादी खूब धूमधाम से संपन्न की। मैंने तो सगाई और शादी में जी भर के नृत्य किया। दूल्हा-दुल्हन का जोड़ा फाख्ता चिड़ियों की तरह आजीवन प्यार में डूबा रहा। एक वर्ष बाद एक सुंदर संतान हुई। एस्थर रोज़ा का चुनाव सौ प्रतिशत सही निकला।

और आपको बताऊँ कि इट्टी का क्या हुआ? किस्मत जब खराब होती हे तो सब कुछ उल्टा पुल्टा होता जाता है। जिस दिन से इट्टी को पता चला कि एस्थर रोज़ा ने उसे सुई की वजह से त्याग दिया था, उस दिन से वह गहरे सदमे में थी। उसने ग्राहकों को सामान बेचना छोड़ दिया। वह दिन रात उसी बात को याद करके रोती थी। शादी तय करने वाले बिचौलिये उसके लिए कई प्रस्ताव लेकर आते पर वह इनकार कर देती। उसकी स्टोर में दिलचस्पी खत्म होने से व्यापार में भारी घटा हुआ। कुछ वर्षों अवसाद में बिताने के बाद उसने लुबलिन के एक तलाकशुदा व्यक्ति से शादी रचा ली। उसके संतान नहीं हुई। जीवन के सारे दुर्भाग्यों को वह एस्थर रोज़ा की बहू, फ्रीडा गिट्टेल, के मत्थे मढ़कर उसको कोसती, और मानसिक परेशानियों के चलते, नीम हकीम और वैद्यों के अलावा चिकित्सकों के पास किसी न किसी बीमारी का निदान पाने के लिए भागती रहती थी।

एक दिन कपड़ा सीने के दौरान, सुई में धागा डालने के लिए उसने सुई अपने मुँह में दबाई। तत्काल उसे गले में चुभन महसूस हुई और सुई गायब हो गई। कहा जाता है शरीर में रक्त के प्रवाह के साथ सुई घूमती रहती है।

दिन रात इट्टी चीखती रहती। उसे लगता जैसे शरीर में अलग अलग हिस्सों में सुई चुभ रही है। कोई कहता उसकी अंतरात्मा उसे कचोट रही है। कोई कहता उसके बुरे कर्मों का फल है। बहुत कष्ट सहने के बाद इट्टी विएना गई जहाँ के नामी सर्जन ने शल्य चिकित्सा से उसकी सुई निकाली और उसको प्रमाण के रूप में सुई दिखाई। अब सच में सुई निकली थी की नहीं, मैं कह नहीं सकती क्योंकि मै वहाँ नहीं थी पर इसका प्रभाव अच्छा ही रहा। इट्टी मानसिक रूप से ठीक हो गई।

वापस आकर इट्टी पहले जैसी स्वस्थ हो गई। वह कभी माँ न बन सकी। माता पिता उसके चल बसे थे। व्यापार ठप्प हो चुका था। उसने फिर से स्टोर खोला और अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा लौटाने में वह सफल हुई। जो वार्तालाप उसके और एस्थर के बीच कभी घटा था, वह इट्टी द्वारा कभी दोहराया नहीं गया। जो भी उसके स्टोर में आता, चाहे कितने भी कम दाम का सामान खरीदता, इट्टी उससे विनम्रता से बात करती और उसे बैठने के लिए कुर्सी जरूर देती।

एक सुई ने कैसे लोगों की किस्मत बदल दी! दिखने में थी तो तुच्छ पर सुई थी बड़ी कमाल की!

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