गीत चतुर्वेदी
गीत चतुर्वेदी

कोशिश करता हूँ किसी भी अभिव्यक्ति से
किसी को भी ठेस न पहुँचे

जिस पेशे में हूँ मैं
वहाँ किसी गुनाह की तरह
कठिन शब्दों को छाँट देता हूँ
कठिन वाक्यों को बना देता हूँ सरल
जबकि हालात दिन-ब-दिन और कठिन होते जाते
मैं समय का सम्पादन नहीं कर पाता

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कितना खुशकिस्मत हूँ
एक जीवन में कितनी स्त्रियों का प्रेम मिला
कितने मित्रों कितने बच्चों का
प्रेम के हर पल में जन्म लेता हूँ
पल-बढ़कर प्रेम की ही किसी आदिम गुफा में
छिप जाता हूँ धीरे-धीरे मृत होता
कन्धे झिड़क कहता हूँ ख़ुद से

एक जीवन और चाहिए पाया हुआ प्रेम लौटने को
घृणा की वर्तनी में कोई ग़लती नहीं होती मुझसे

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नफ़रत में नुक्ता लगाना कभी नहीं भूलता

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