एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव
एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव

एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव

एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव

कड़ों में बँटा हुआ सब-कुछ 
टुकड़े-टुकड़े जिंदगी 
टुकड़े-टुकड़े मौत 
टुकड़े-टुकड़े खुशियाँ 
टुकड़े-टुकड़े दुख, 
सभी को चाहिए होता है – 
एक टुकड़ा आकाश 
और एक टुकड़ा भूमि 

इस दुनिया में जो भी दिखता है 
उसमें भी एक टुकड़ा सच है 
और एक टुकड़ा झूठ 
एक टुकड़ा आग तो एक टुकड़ा राख 
टुकड़ों-टुकड़ों में चलती है सरकार 
टुकड़ों-टुकड़ों में बढ़ता है व्यापार 
टुकड़ों-टुकड़ों में उठते हैं 
टुकड़ों-टुकड़ों में गिरते हैं 

टुकड़े-टुकड़े पूर्वाग्रहों 
और टुकड़े-टुकड़े विचारों से 
हम जिंदगी को टुकड़ो-टुकड़ों में जीते हैं; 
किसी फटे हुए नोट रूपी इन टुकड़ों को 
समय के ग्लू से जोड़-जाड़ कर 
हम चलाने का प्रयास करते हैं 
लेकिन एक न एक दिन 
हमें उस बट्टे की दुकान पर जाना ही पड़ता है 
जहाँ हमें उस नोट का 
आधा मूल्य ही प्राप्त होता है 
और हम हँसी-खुशी 
घर वापस लौट आते हैं !

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