सपने की बात | राहुल देव

सपने की बात | राहुल देव

सपने की बात | राहुल देव सपने की बात | राहुल देव जो ढूँढ़ता हूँ मैं किताबों में वह मिलता नहीं आदमी की असलियत उसकी परिभाषा हम नहीं जानते जो दिखता है वह हमेशा सच होता नहीं सपने कितने विशाल होते हैं सोचो सपनों की एक दुनिया होती तो कैसा रहता सपने देखने वालों पर कोई टैक्स नहीं लगता लोग हँसते हैं शायद वे नहीं जानते सपनों में … Read more

रहस्य | राहुल देव

रहस्य | राहुल देव

रहस्य | राहुल देव रहस्य | राहुल देव चारों ओर हरीतिमा धवल कांति से शोभित कुछ दृश्य ! अद्भुत, अलग जो पूर्ण हैं स्वयं में भाव-भंगिमा है असीमित अभिव्यक्ति से परे; प्रकाश का उद्गम उल्लसित करता है मन को स्रोत क्या है ज्योतिपुंज के आलोक का ? क्यों नहीं दीखते दोष सर्वत्र गुण ही गुण मधुमिता का गुणगान सरस-सहज प्रकृति का एकालाप दिखती है कभी धुँधली सी आकृति धुँधला आभास छिपाए क्या … Read more

बच्चे और दुनिया | राहुल देव

बच्चे और दुनिया | राहुल देव

बच्चे और दुनिया | राहुल देव बच्चे और दुनिया | राहुल देव देखना कहीं झरने के मानिंद गिरता चढ़ता आसमान को छूने की चाह रखने वाला अपनी दुनिया का बादशाह कहीं रुक न जाए समय का पहिया कहीं उसके सपनों को बींध न दे एकलव्य की तरह कहीं उसकी प्रतिभा दबा न दी जाए अनंत चेहरे अगणित रचनाएँ हर एक विशेष है यहाँ बचपन के सुनहरे दिन किशोरावस्था … Read more

पतझड़ के बाद | राहुल देव

पतझड़ के बाद | राहुल देव

पतझड़ के बाद | राहुल देव पतझड़ के बाद | राहुल देव झड़पड़ झड़पड़ पतझड़ सतत रूप से प्रवाहमान आधी जिंदगी के बाद तेरा आना भला हो तेरा उससे ठीक पहले सौंदर्य आकर्षित करता था तब क्या समझा चलो अभी सोचा बरसों पहले तेरी याद न आई और अचानक आज तुमसे मिलकर में खुश हो लेता हूँ सच पूछो – तो अंतर से दुखी हूँ भाई ! हर बहार … Read more

ओस की वह बूँद | राहुल देव

ओस की वह बूँद | राहुल देव

ओस की वह बूँद | राहुल देव ओस की वह बूँद | राहुल देव सहसा दृष्टि पड़ी उस पर वह ओस की बूँद ! सूक्ष्म क्षेत्र में सिमटी शून्य से अनंत की ओर अवगुंठन से विकल हो अश्रुओं के क्षेपण से मानो लाज के घूँघट में सिमटना चाहती हो; छिपाना चाहती हो अपना अव्यक्त स्वरूप रात्रि के अवसान पर प्रभातकरों के स्पर्श से हर्षातिरेक में झूमना … Read more

एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव

एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव

एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव एक टुकड़ा आकाश | राहुल देव कड़ों में बँटा हुआ सब-कुछ टुकड़े-टुकड़े जिंदगी टुकड़े-टुकड़े मौत टुकड़े-टुकड़े खुशियाँ टुकड़े-टुकड़े दुख, सभी को चाहिए होता है – एक टुकड़ा आकाश और एक टुकड़ा भूमि  इस दुनिया में जो भी दिखता है उसमें भी एक टुकड़ा सच है और एक टुकड़ा झूठ एक टुकड़ा आग तो एक टुकड़ा राख टुकड़ों-टुकड़ों में चलती है … Read more