एक शाम दो दोस्तों की बातचीत | प्रभात रंजन
एक शाम दो दोस्तों की बातचीत | प्रभात रंजन

एक शाम दो दोस्तों की बातचीत | प्रभात रंजन

एक शाम दो दोस्तों की बातचीत | प्रभात रंजन

“दोस्त ! क्यों ये आँखें नम ?
अच्छा
कैसी है, कहाँ है, बताओ जरा
भई, हमसे नहीं देखा जाता
तुम्हारा यह गम”

“नहीं, दोस्त ! घर में आटा खतम
कहाँ आँखें नम ?
यूँ ही कुछ कोयला-वोयला पड़ गया होगा –

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“अच्छा यार, मिलेंगे फिर
इस वक़्त फुरसत है कम”

(वाह रे वाह आदम !)

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