Tushar Dhawal
Tushar Dhawal

जिसकी गरदन के पीछे से झाँकता सूरज ढल चुका है 
धरती की फटी हथेली से उगा वह कुंद फोड़ा 
अब नीला पड़ गया है विष पीकर 
कितने अवसाद कितनी सदियों के प्रश्न जीकर 
वह खड़ा है अकेला जब सब जा चुके हैं 
लौट चुका है प्रश्नाकुल दिन का उजाड़ संन्यासी रातों की कोख में 
ओस की दीमक धीरे धीरे घोल रही है उसकी चट्टानी हड्डियों को 
खोपड़ी की कोटर में दो आँखें सपनीली सी मगर 
डूबी हुई हैं स्वप्न में सितारों के पार एक समझौता दुखों से है

See also  तड़प | आत्माराम शर्मा

समझौता यह दुख का दुखों से 
जीवन की जीवन में आहुति मृत्यु के सनातन यज्ञ में 
जीवन तिलक लगाता है मृत्यु के ललाट पर 
शुभ लिखता है उसके माथे पर

शोध अथक अस्तित्व का जीवन की मिट रही लकीरों पर 
उसे थामे रहता है

ज्ञान अकेला कर चुका है उसे अलग अपनी व्याप्ति में 
और विष पीकर वह नीला धूसर शांत है

उसकी तहों में उठ रही लहर अभी अधूरी है 
ज्ञान भी ज्ञान नहीं है अभी 
अनुभूतियाँ बदलेंगी उसका रूप

See also  भोर का तारा | घनश्याम कुमार देवांश

सब जा चुके हैं 
वह खड़ा है अकेला 
धरती की हथेली से उगा कुंद फोड़ा

यह किस दुख का पहाड़ है ? 
यह किस पहाड़ का दुख है ?

उसकी पीठ पर लदा है संसार एक 
उल्टे पड़े बासी बरतनों के निरर्थक औचित्य सा 
वही उम्मीदें हैं वही निराशा कुंठा भी वही है 
जब चाँद यह आकाश की स्लेट पर उजाला लिख रहा है 
वह खोजता है राग जीवन से 
उसमें अस्थियाँ हैं विसर्जित पूर्वजों की

See also  तीलियाँ | अंजू शर्मा

उसमें बसती हैं कल्पनाएँ निर्वात अशरीरी 
वह बारिश की अँगुलियों से गीत लिखता है हवा में 
कराहता है दुःस्वप्नों की नींद में 
राग विराग के बीच दुखों का सफर 
तापता तराशता है उसे 
संघर्षों के संस्मरण में 
ज्ञान और सत्य आपस में घुल जाते हैं

गहराती बेला में 
गूढ़ हो जाता है 
धरती की फटी तलहथी से उगा यह कुंद फोड़ा

Leave a comment

Leave a Reply