अरे चिरकुट
कहाँ जा रहे हो?
ससुरा क्या कर दिया है तुमने?

बातों-बातों में
गाली देने का शील
यही तो उनको खास बनाते हैं
अगर ऐसा नहीं था

तो कौन जानता कृष्ण के नाम वाले इस आदमी को

जो हमारे लिए प्यारे हैं, भाई हैं
पता नहीं उनके दिलो-दिमाग में क्या चलता रहता है
कभी फ्री होकर बैठते नहीं
हमेशा कुछ न कुछ करते ही रहते हैं
पुस्तकालय के अँधेरे धूल भरे कोनों में
अपने आप को खो बैठते थे हमारे यह कृष्ण
सुना है इनकी कई कहानियाँ छपी हैं
उन सबमें खुद की जिंदगी को ही
उकेरा है इन्होंने
आखिर इतना क्या है
उनके मन में
कहीं मोहग्रस्तता से हुआ मोहभंग तो नहीं

See also  वतन का गीत | गोरख पाण्डेय

मैं हमेशा सोचता हूँ
गालियाँ देने के बाद जब वे शांत हो जाते हैं
उनके चेहरे पर एक क्रुद्ध भाव झलकता है
क्या यही वह भाव है
जो इस दुनिया के प्रति उनके मन में है
या जिंदगी को जी लेने की जिजीविषा?
आज भी मैं उनको ताक रहा हूँ
गालियाँ सुन रहा हूँ
लेकिन मन में यह सोच
हमेशा रहती है
उनके अंदर एक इनसान जिंदा है
जिसका कोई छल-कपट नहीं होगा…
होते हैं आज भी कुछ लोग ऐसे..
हमारे इस कृष्ण के नाम वाले भाई जैसे…

See also  पुकारता शहर