पड़ोसी औरतों की
धुलाई की तड़कें सुनता
अक्सर उठता हूँ सवेरे
उनमें से एक को रसोई के कुएँ से
पानी भरती देखता हूँ।

वे कहीं नहीं जातीं

किराए का कमरा ताला करके मैं काम पर जाता हूँ
उनके आँगन से होकर
मुझे देखती
बरामदे में वे उठ खड़ी होती हैं।
फिर वहीं बैठी रहती हैं, उसी तरह
आपसी चुप्पी में।

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शाम को मैं कमरे में वापस आता हूँ
तब वे आँगन बुहारती रहती हैं
हाल ही आँगन में गिर पड़
उनके मामा की हालत पूछने पर
दोनों एक साथ जवाब देती हैं।

शाम को वे धारावाहिक देखती हैं
बिजली के रुक जाने पर
उनमें से एक
बरामदे में
इधर-उधर टहलती रहती हैं।

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दूरियाँ
दूरियाँ
दूरियाँ काटती होंगी, है न?