धूप बोले का अँजोर है | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
धूप बोले का अँजोर है | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

धूप सूरज के बोले का
अँजोर है
किए की आँच
गाए की कुनकुनाहट है

धूप बोले का अँजोर है
किसी की आवाज छीन लेना
उसकी धूप हड़प लेना है

धूप बोले का अँजोर है
चिड़ियाँ बोल-बोल कर
सुबह कर देती हैं!

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