धरती का गीत | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
धरती का गीत | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

अपने गीतों में आदिवासी औरतें
गा रही हैं धरती का कोई आदि गीत

धूप में गेहूँ काटते भीगी है पसीने से उनकी देह
लेकिन सुरीले कंठ से निकल रही लय में
चिड़ियों का कलरव, मिट्टी की महक
सब हैं। बहुत मधुर है उनकी रागिनी।

धरती की बेटियाँ हैं
स्मृति के तह में अपनी धरती के लिए
सहेजे हैं गीत। जो किसी शास्त्र के नहीं
बल्कि उनके कंठ के सहारे नित नई हैं।

कितना अद्भुत है यह देखना –
कि एक तरफ इतना कठिन श्रम
और दूसरी ओर कंठ में बसा इतना मधुर-स्वर

दिन-दोपहर धूप में तपती
मेहनतकश धरती की बेटियाँ
पारी-पारी से गा रही हैं
और उनके हाथ का स्पर्श-पा
बालियों में कसा दाना
बज रहा है…

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *