बिटिया बड़ी हो रही है
माँ को दिन-रात यही चिंता खाए जा रही है कि

बिटिया शादी के लिए हाँ क्यों नहीं करती
और कितना पढ़ेगी अब
ज्यादा पढ़ लिख कर करेगी भी क्या
कमासुत पति मिलेगा तो
जिंदगी भर सुखी रहेगी
इतनी उमर में तो इसको जनम भी दे दिया था मैंने

माँ की खीझ का शिकार नित्य ही होती है बिटिया।
बिटिया जैसे-जैसे बड़ी हो रही है
दिन-रात आशंकाओं में जीती है माँ
जाने कब, कहाँ, कुछ ऊँच-नीच हो जाय
सड़कों पर आए दिन
लड़कियों को सरेआम उठा लिए जाने की घटनाओं से
बेहद चिंतित होती है माँ
स्वार्थी युवकों के प्रेम-जाल में फँस कर
घर से बेघर हुई तमाम लड़कियों के हाल सुन-सुन
नित्य बेहाल होती है माँ।
माँ चौबीसों घंटे नजर रखती है बिटिया पर
उसका पहनावा,
साज-श्रृंगार,
मोबाइल पर बतियाना,
बाथरूम में गुनगुनाना,
सब पर निरंतर टिका रहता है माँ का ध्यान
जैसे बगुला ताकता रहता है निर्निमेष मछली की चाल,

See also  मुझे बुलाता है पहाड़ | त्रिलोचन

माँ जैसे झपट कर निगल जाना चाहती है
बिटिया की हर एक आपदा।
बिटिया बचना चाहती है
माँ की आँखों के स्कैनर से
वह चहचहाना चाहती है
बाहर आम के पेड़ पर बैठी चिड़िया की तरह
वह आसमान में उड़ कर छू लेना चाहती है
अपनी कल्पनाओं के क्षितिज को
इसीलिए शायद बिटिया नहीं करना चाहती
शादी के लिए हाँ
पर उसकी समझ में नहीं आता कि
चारों तरफ पसरी अनिश्चितताओं के बीच
वह कैसे निश्चिंत करे अपनी माँ को
और आश्वस्त करे उसे अपने भविष्य के प्रति।

See also  खुद को ढूँढ़ना