एक शीतोष्ण हँसी में
जो आती गोया
पहाड़ों के पार से
सीधे कानों फिर इन शब्दों में
ढूँढ़ना खुद को
खुद की परछाई में
एक न लिए गए चुंबन में
अपराध की तरह ढूँढ़ना
चुपचाप गुजरो इधर से
यहाँ आँखों में मोटा काजल
और बेंदी पहनी सधवाएँ
धो रही हैं
रेत से अपने गाढ़े चिपचिपे केश
वर्षा की प्रतीक्षा में