भीख के लिए
दुआर-दुआर फिर रहा है
आवाज का बादशाह
इकतारे की झनझनाहट
और उसके सुरीले कंठ से फूटता
मीरा का पद
अद्भुत खुशबू से
भर दिया हमारा मन
जूझ रहा है
इतनी बड़ी विडंबना से
फिर भी कितना कोमल है
उसका कलेजा
कितना मगन होकर गाता है
उँगलियाँ कितनी निर्मलता से
करती हैं लय का स्पर्श
जीवन की चमक है
उसकी आँखों में
मोहक मिठास बाँटता
फिर रहा है दुआर-दुआर
आवाज का बादशाह!