ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई | प्रताप सोमवंशी
ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई | प्रताप सोमवंशी

ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई | प्रताप सोमवंशी

ये कैसा पिता है जियाउद्दीन युसफजई | प्रताप सोमवंशी

कौन है ये जियाउद्दीन युसुफजई
क्या चाहता है
जब पूरी स्वात घाटी बंद कर लेती है किवाड़
तालिबानियों की दशहत से
लोग दुबके जाते हैं घरों में
एक फरमान कि बेटियाँ गईं स्कूल
तो फेंक दिया जाएगा उनके चेहरे पर तेजाब
माएँ आँचल में छुपा लेती हैं बेटियाँ
लेकिन ठीक इसी वक्त एक किसान जियाउद्दीन युसुफजई
बो रहा होता है अपनी बेटी मलाला में हिम्मत के बीज
इस उम्मीद के साथ कि जब ये बीज पौधा फिर पेड़ बनेगा
तब आएँगे फल और बंजर नहीं कही जाएगी उसकी स्वात घाटी
शिक्षक जियाउद्दीन युसुफजई
अपनी बेटी के हाथ में रखता है रवींद्रनाथ टैगोर की किताब
समझाता है एकला चलो रे का सबक
बेटी मलाला निकल पड़ती है स्कूल के लिए
उस वक्त भी जब सड़कों पर साथ होती है सिर्फ दहशत
टेलीविजन के कैमरों के सामने निडर मलाला
पूछ रही होती है सवाल कि क्यों नहीं जा सकती है वह स्कूल
कौन सा मजहब इजाजत देता है
कि बेटियाँ स्कूल जाएँ तो उन पर फेंक दिया जाए तेजाब
बरसाए जाएँ कोड़े, मार दी जाएँ गोलियाँ
गर्व से छाती फुला रहा होता है
स्वात घाटी का मशहूर कवि जियाउद्दीन युसुफजई
ये वो क्षण हैं जब वो कविता लिख नहीं
जी रहा होता है घाटी की सड़कों पर
बेटी मलाला बनना चाहती है डाक्टर
पिता चाहता है कि वह बने सियासतदाँ
और करे लोगों में छिपे डर का इलाज
ताकि बेटियाँ वो बन सकें जो बनना चाहती हैं
न कि किसी मलाला नाम के डाक्टर को
किसी दहशतगर्द के तेजाब से डरना पड़े
बेटी मलाला के सिर पर हाथ रखे
हिमालय की तरह खड़ा है जियाउद्दीन युसुफजई
दहशतगर्दों को इस जवाबी ऐलान के साथ कि
वो न घाटी छोड़ेगा न मलाला स्कूल
क्योंकि अब डरने की बारी तुम्हारी है
(* मलाला युसुफजई के पिता)

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