यात्रा हमेशा
कुछ नया ज्ञान या
नई जानकारी देती है हमें।
अक्सर मिल जाते हैं
कई ऐसे पात्र
जो कभी-कभार हमारे सामने
ऐसी जिंदगी का बयान
कर जाते हैं
जिसकी हमें कभी उम्मीद
भी नहीं होती।
इस बार भी आया एक
ऐसा आदमी मेरे सामने।
है तो इनसान ही
लेकिन मुझे अभी भी
यकीन नहीं हो रहा है
अपनी आँखों पर।
जब मैंने देखा तो
वह अपने सहयात्री को
सीट दे रहा था
सहयात्री बूढ़ा था
जो अपने आप खड़ा नहीं
हो पा रहा था।
अब बैठ गया सहयात्री
वह आदमी सीट के सहारे
उठ खड़ा हो गया।
अचानक मेरी नजर उधर
पड़ी तो मैं दंग रह गया
जिस आदमी ने दूसरे को अपनी
सीट दी थी उनके
दोनों हाथ नहीं थे !
मैं और दोस्त आपस
में देखे और शर्म के मारे
सिर झुकाए
हम खड़े थे एक ऐसी जगह पर
जहाँ
मौन ही बात से बेहतर
साबित हो रहा था !!!