विश्वग्राम की अगम अंधियारी रात | दिनेश कुशवाह
विश्वग्राम की अगम अंधियारी रात | दिनेश कुशवाह

विश्वग्राम की अगम अंधियारी रात | दिनेश कुशवाह

विश्वग्राम की अगम अंधियारी रात | दिनेश कुशवाह

आजकल ईमानदार आदमी 
कुर्सी में चुभती कील जैसा है 
कोई भी ठोक देता है उसे 
अपनी सुविधा के अनुसार 
बहुत हुआ तो 
निकालकर फेंक देता है।

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ईमानदार आदमी का हश्र देखकर 
डर लगता है कि 
बेईमानों की ओर देखने पर वे 
आँखें निकाल लेते हैं ।

जिन लोगों का कब्जा है स्वर्ग पर 
उनके लिए ईमानदार आदमी 
धरती का बोझ है।

ईमानदार आदमी की खोज वे 
संसार की सैकड़ा भर लड़कियों में 
विश्व सुंदरी की तरह करते हैं 
और बना लेते हैं 
अपने विज्ञापनों का दास।

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इधर लोग 
देह, धरम, ईमान बेचकर 
चीजें खरीदना चाहते हैं 
सच्चाई-नैतिकता पर लिखी किताब 
लोकार्पित होती है 
माफिया मंत्री के हाथों।

इतिहास के किस दौर में आ गए हम 
कि सामाजिक न्याय के लिए आया 
मुख्यमंत्री मसखरी के लिए 
महान परिवर्तन के लिये आई नेत्री 
हीरों के गहनों के लिए 
इक्कीसवीं सदी के लिए आया प्रधानमंत्री 
तोप के लिए 
रामराज्य के लिए आया प्रधानमंत्री 
प्याज के लिए 
ईमानदारी का पुतला प्रधानमंत्री 
घोटालों की सरकार के लिए। 
और अच्छे दिनों का प्रधानमंत्री 
सबसे बुरे दिनों के लिए जाना जाएगा।

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