विष बुझी हवाएँ | यश मालवीय
विष बुझी हवाएँ | यश मालवीय

विष बुझी हवाएँ | यश मालवीय

विष बुझी हवाएँ | यश मालवीय

नीम अँधेरा
कड़वी चुप्पी
औ’ विष बुझी हवाएँ
हुई कसैली
सद्भावों की
वह अनमोल कथाएँ

बचे बाढ़ से पिछली बरखा
सूखे में ही डूबे
कोमा में आए सपनों के
धरे रहे मंसूबे
फिसलन वाली
कीचड़-काई
ठगी ठगी सुविधाएँ
मन की उथली
छिछली नदिया
की अपनी सीमाएँ

यह आदिम आतंक डंक सा
घायल हुए परस्पर
अलग अलग कमरों में पूजे
अपने-अपने ईश्वर

चौराहों पर
सिर धुनती हैं
परसों की अफवाहें
आज अचानक
जाग उठी हैं
कल वाली हत्याएँ

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