ऊपर उठता है सिर्फ धुआँ | असलम हसन
ऊपर उठता है सिर्फ धुआँ | असलम हसन
पोटली में बाँध कर चाँद
जब कोई निकलता है निगलने सूरज
तब गर्म पसीने की उम्मीद में साँवली मिट्टी
कुछ और नम हो जाती है…
और दिन भर पिघलती हुई ख्वाहिशें
सिमट कर कुछ और कम हो जाती हैं
शाम ढले घास और जलावन लेकर
घर लौटती उस गोरी पर चस्पाँ होता है चुपचाप
एक और स्याह टुकड़ा
रात गए तपता है गोल-गोल चाँद
गर्म तवा पर
सिर्फ खोखला धुआँ
ऊपर उठता है आसमान