तीन बोरी डीएपी | नीरज पांडेय
तीन बोरी डीएपी | नीरज पांडेय

तीन बोरी डीएपी | नीरज पांडेय

तीन बोरी डीएपी | नीरज पांडेय

तीन बोरी 
डीएपी का कर्ज 
और चार जोड़ी सपने 
लेकर 
जय किसान की धुन में चूर 
वो कुछ सोच पाता 
उसके पहले ही 
भालू 
आता है 
पूरी फसल 
खाकर चला जाता है 
फिर नए बने बुलंद भारत की 
बुलंद बुलंद घासें 
बड़ी सफाई से 
उसकी पूरी जमीन को रफू करके 
साबित कर देती हैं 
कि 
“जँगरचोर था साला 
ना हल चले न चले कुदारी 
बइठे भोजन देंइ मुरारी की जमात का आदमी था 
मर गया…. जाने दो” 
रत्ती भर भी चिंता मत करना 
हम तुम्हारे साथ हैं 
तुम्हारे हितों की रक्षा करने के लिए 
तन 
मन 
और 
धन से 
और फिर दिशाशूलों की सभा विसर्जित हो जाती है

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किसान जँगरचोर नहीं होते 
साहब 
यह दुनिया का सबसे बड़ा सत्य है 
जिस दिन किसान अपने बारे में 
सोचने लग जाएगा 
यकीन मानिए 
भालू बिना लुहकारे ही भाग जाएगा 
और तुम्हारी उगाई घासें झुरा जाएँगी!

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