Vivek Mishra
पार उतरना धीरे से
सूरज सिर पर था। धूप में नदी का पानी ऐसे चमक रहा था मानो नदी न हो, चाँदी की कोई चादर धीरे-धीरे हिल रही हो। पानी की सतह से उठती भाप ने धरती और आसमान के बीच एक झीना परदा तान दिया था, जिससे उस पार की हर चीज धुँधली दिख रही थी। रातना कमैती … Read more
दोपहर
गर्मी की दोपहर का सन्नाटा गली में साँय-साँय करता। जब अपनी ननिहाल में, छुट्टियाँ बिताने आए, हम तीनों भाई-बहिनों को, मामा के पाँच बच्चों के साथ, दिन के ग्यारह बजते-बजते, खिला-पिलाकर, दुमंजिला मकान की बैठक कहे जाने वाले, नीचे के कमरे में लिटा दिया जाता। यह घर का सबसे बड़ा और ठंडा कमरा होता। बैठक … Read more
थर्टी मिनिट्स
कमरे की दीवार पर टँगी घड़ी में अभी नौ बजने में दस मिनट थे। कमरे की छत पर लटके पंखे पर एक नायलॉन की रस्सी का फंदा लटक रहा था। फंदे के ठीक नीचे एक पुरानी बिना हत्थे वाली प्लास्टिक की कुर्सी पड़ी थी। सामने स्टूल पर रखी स्टॉप वॉच तेजी से दौड़ रही थी। … Read more
तन मछरी-मन नीर
हवेली को फूलों से सजते हुए देखकर उसने चश्मा उतारा और उसे रूमाल से ऐसे पोंछने लगी मानो समय पर जमी धूल छुटा रही हो। आज वह फूलों से एक पुरानी हवेली सजवा रही थी। समय कितना बदल गया था, पर लगता था जैसे कल ही की बात है। इन पहाड़ों से सैकड़ों मील दूर, … Read more
खंडित प्रतिमाएँ
राघव अभी भी मुँह बाए, आँखें फाड़े, जड़वत खड़े थे और वह भारी देह वाला छ सवा छ फुट का आदमी बड़े इत्मीनान से उसी कुएँ से पानी निकाल रहा था, जिसमें अभी कुछ देर पहले ही उसने एक जीते-जागते इनसान को काटकर फेंक दिया था। यह सब करते हुए वह इतना सहज था कि … Read more