सपना

क्या आपने भी कभी एक सपने के भीतर दूसरा सपना देखा है, जैसे एक समय में एक फिल्म के भीतर दूसरी फिल्म चलती हो और पहली फिल्म के बंद हो जाने पर भी दूसरी चलती रहे और हम उसे देखते रहें, एक सपने की तरह और हमारी नींद न टूटे। सपने के बाहर कोई जागता … Read more

बसंत

बसंत पंचमी का दिन था। आसमान में घने बादल छाए थे। मंद्र हवा के साथ हल्की-हल्की बूँदें पड़ रही थीं। बूँदे सूखी जमीन पर गिरकर किसी जादू की तरह गायब हो रही थीं। वे गायब होने पर एक खुशबू अपने पीछे छोड़ जाती थीं। लगता था तेज बारिश आने को है, पर धीरे-धीरे तेज होती … Read more

पार उतरना धीरे से

सूरज सिर पर था। धूप में नदी का पानी ऐसे चमक रहा था मानो नदी न हो, चाँदी की कोई चादर धीरे-धीरे हिल रही हो। पानी की सतह से उठती भाप ने धरती और आसमान के बीच एक झीना परदा तान दिया था, जिससे उस पार की हर चीज धुँधली दिख रही थी। रातना कमैती … Read more

दोपहर

गर्मी की दोपहर का सन्नाटा गली में साँय-साँय करता। जब अपनी ननिहाल में, छुट्टियाँ बिताने आए, हम तीनों भाई-बहिनों को, मामा के पाँच बच्चों के साथ, दिन के ग्यारह बजते-बजते, खिला-पिलाकर, दुमंजिला मकान की बैठक कहे जाने वाले, नीचे के कमरे में लिटा दिया जाता। यह घर का सबसे बड़ा और ठंडा कमरा होता। बैठक … Read more

दीया

खेतों के बीच सोए एक गाँव वाले की सुबह शहरों के बंद कमरों में सोए शहरातियों की सुबह से बिलकुल अलग होती है और बुंदेलखंड में माताटीला बाँध की ओर जाती पक्की सड़क से बीस किलोमीटर दूर बसे गाँव सतलोन की सुबह तो बस सतलोन की ही होती। यहाँ रोज नए-नए रूप धरता, आसमान। रोज … Read more

दुर्गा

झाँसी में दशहरे की धूम, यूँ तो हर साल ही होती थी, पर इस बार इसका इंतजार नौ साल के ज्ञान को सबसे ज्यादा था। इतनी श्रद्धा उसके मन में पहले कभी नहीं उमड़ी थी। नवरात्र के नौ के नौ दिन, बिना नागा, वह दुर्गा के दर्शन करने जाता रहा। ये दिन कैसे बीते थे, … Read more

थर्टी मिनिट्स

कमरे की दीवार पर टँगी घड़ी में अभी नौ बजने में दस मिनट थे। कमरे की छत पर लटके पंखे पर एक नायलॉन की रस्सी का फंदा लटक रहा था। फंदे के ठीक नीचे एक पुरानी बिना हत्थे वाली प्लास्टिक की कुर्सी पड़ी थी। सामने स्टूल पर रखी स्टॉप वॉच तेजी से दौड़ रही थी। … Read more

तितली

जितनी तेजी से दो पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ी भाग रही थी, उसमें बैठे लोग भी अपने पीछे कुछ छोड़ते हुए भागे जा रहे थे और उतनी ही तेजी से रेलगाड़ी की खिड़की से दिखता बाहर का संसार – घर, दुकान, पेड़, जानवर, खेत, ईंटों के भट्टे, दीवारें, उन पर लिखे विज्ञापन पीछे छूटे जा रहे … Read more

तन मछरी-मन नीर

हवेली को फूलों से सजते हुए देखकर उसने चश्मा उतारा और उसे रूमाल से ऐसे पोंछने लगी मानो समय पर जमी धूल छुटा रही हो। आज वह फूलों से एक पुरानी हवेली सजवा रही थी। समय कितना बदल गया था, पर लगता था जैसे कल ही की बात है। इन पहाड़ों से सैकड़ों मील दूर, … Read more

खंडित प्रतिमाएँ

राघव अभी भी मुँह बाए, आँखें फाड़े, जड़वत खड़े थे और वह भारी देह वाला छ सवा छ फुट का आदमी बड़े इत्मीनान से उसी कुएँ से पानी निकाल रहा था, जिसमें अभी कुछ देर पहले ही उसने एक जीते-जागते इनसान को काटकर फेंक दिया था। यह सब करते हुए वह इतना सहज था कि … Read more