सूर्य संधिकाल का

सूर्य संधिकाल का

जब किसी की लंबी परछाईं देखो न तुम,तो जान लेना कि वह कमजोर सूरज वाले संधिकाल में जी रहा है।मगर संधिकाल में अंतर कैसे पड़े मालूम?कैसे जाने कोई कि यह सुबह है या शाम?किस तरह से तय किया जाए कि आशा का उजाला आने को हैअथवा निराशा का अँधेरा?मालूम करने से कोई लाभ नहींसंधिकाल तो … Read more

सफाई

सफाई

कालिख धोने का कायदासीखते-सीखते सीखता है आदमीकि कितने कम पानी मेंऔर कम मेहनत मेंकितनी ज्यादा गंदगी कोरगड़ कर वह खुद से छुड़ा पाता है।सफाई करने की कला यहमाँजने की सलीकेदार शैलीपानी से खेलते-खिलखिलाते बालकवि को आते-आते आती हैकविता कैफियत की किफायत का नाम हैयह जानने के लिए उसे जर्राह बनना पड़ता है जिंदगी काजब तक … Read more

नग्नता-बोध

नग्नता-बोध

लगभग छह के हो चले मेरे बेटे नेजब मना किया सबके सामने बदलने से अपने कपड़ेकहा कि वह अब अकेले नहा सकता है बिना किसी सहयोग के,मैं जान गया कि वह भी हम सब की तरहअदन के बगीचे से बाहर निकल आया हैखाकर वह शैतानी फल जिसे अनजाने चखकरहम सब बाहर निकले थे कभी।आदमी का … Read more

तुम ही तो हृदय हो!

तुम ही तो हृदय हो! 1

हृदय होना बहुत आसान हैहर वह वस्तु जो मांसल होसारी-सारी उम्र लगातार बिना थकेफैल कर जिंदगी सहेजती होफिर सिकुड़ कर उसे बाँटती होहृदय हो सकती है।तुममें ये सारी आसान बातें हैं माँ,इसलिए छाती के बाहर बमुश्किलएक तुम ही हृदय हो।

जन्मदिन की ड्रेस

जन्मदिन की ड्रेस

हर साल मेरे जन्मदिन पर तोहफा देता है समयएक पुरानी पड़ती देह के लिएनई ड्रेस बिना प्राइस-टैग केकि इसे पहनो, विचरो, दुनिया-भर में घूम आओ।बिना जताये परिधान धरने का ढंगऔर न बताता था गुर कि साल-भर ढके घूमने का ड्रेस-कोड क्या है।दिनों के रेशों से बनीं-सिलीं महीनों की तहेंउन तहों से बने तमाम किस्म के … Read more

चौदह फरवरी

चौदह फरवरी

आज चौदह फरवरी हैऔर गुप्ता अंकल रो रहे हैंसिसक रहे हैं, फफक रहे हैंआँसुओं के सैलाब में वसंत को गीला कर रहे हैंउनकी पुरानी दुकान जो कॉलेज के सामने थीआज सुबह बेरहमी से तोड़ी गई हैबिन पते के रंगीन ग्रीटिंग कार्ड फाड़े गए हैंनाजुक गिफ्टों को क्रूरता से पटका गया है।जो कुछ किस्मत से बच … Read more

चिड़िया

चिड़िया

कंप्यूटर-स्क्रीन पर मरी हुई चिड़ियाको उभरा देखकर फटी रह गई थींतुम्हारी जिज्ञासु आँखें अचानकजम गया था माउस के सहारेपेजों को कुतरता हाथ वहगायब हो गए थे जबड़े के थम जाने सेउठते-मिटते कपोलों के वे कोमल उभार।‘नकली है’ मैंने कहा था :चिड़िया नहीं मरती किसी चूइंग गम को खाकर इस तरहचबैने को चीन्हना उसकी चोंच जानती … Read more

ओले की गलन

ओले की गलन

कमरे के भीतर से झाँकते हैं शहरीकि आज बाहर ओले गिरे हैं!पकौड़ियाँ तली जा रही हैं यहाँचाय के घूँटों के साथ उतारी जाएँगी नीचे हलक से अभी,यहाँ से महज डेढ़ किलोमीटर दूरी परगेहूँ की खड़ी फसल चित हो गई हैमगर अन्नदाता के पास आँसू भी नहीं बचे हैं अबहलक से नीचे उतारने को।ये ओले नहीं … Read more

उदासीनता का अभिशाप

उदासीनता का अभिशाप

मैं जहाँ भी प्रकृति देखता हूँमुझे वह भुसभरी नजर आती है।प्राणों के महीन स्पंदन की जगहउसमें ठोस बुरादा है सही आकार के लिए।मैं हर जिंदा जान पड़ती वस्तुको छूता हूँ कि गलत साबित होऊँवह मुझसे चाहे पीछे हटे, लिपट जाएया फिर मुझे लपक कर काट ही लेमगर ऐसा कुछ भी नहीं घटता आमने-सामनेखड़ी रह जाती … Read more

अस्त्र जो सज्जा है

अस्त्र जो सज्जा है

इंद्रधनुष आसमान में दिखलाई पड़ता हैऊँचाई पर, बादलों की रुई के बीचसुदंर, सतरंगी अर्धवृत्तमगर बाण नजर नहीं आते,संधान करने वाले ने केवल धनु की नुमाइश की हैप्रत्यंचा उतार कर, आकाश के म्यूजियम मेंलेकिन एक भी तीर बगल में नहीं सजायाजानते हो क्यों?क्योंकि कोई लक्ष्य है ही नहींजो साधा गया होकोई तीर है ही नहींजो मारा … Read more