जब किसी की लंबी परछाईं देखो न तुम,तो जान लेना कि वह कमजोर सूरज वाले संधिकाल में जी रहा है।मगर संधिकाल में अंतर कैसे पड़े मालूम?कैसे जाने कोई कि यह सुबह है या शाम?किस तरह से तय किया जाए कि आशा का उजाला आने को हैअथवा निराशा का अँधेरा?मालूम करने से कोई लाभ नहींसंधिकाल तो […]
Tag: Skanda Shukla
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नग्नता-बोध
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तुम ही तो हृदय हो!
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जन्मदिन की ड्रेस
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चौदह फरवरी
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ओले की गलन
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उदासीनता का अभिशाप
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