पाकिस्तान से युद्ध के दिन थे। हवा भारी थी। लोग डरे हुए और सचमुच नीमसंजीदा। आकाश झुककर छोटा सा हो गया था। – रंगहीन मटमैला तथा डरावना। क्षणों की लंबाई कई गुना बढ़ गई थी। आतंक, असुरक्षा और बेचैनी से लदा दिन वक्त से पहले निकलता और शाम के बहुत पहले यकबयक डूब जाता था। […]
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बोलने वाले जानवर
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डाली नहीं फूलती
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जहाँपनाह जंगल
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जली हुई रस्सी
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जगह दो, रहमत के फरिश्ते आएँगे
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