मैं तकरीबन आधी रात को लौट आया। यह लौटना अत्यंत तकलीफदेह और अप्रत्याशित था। मेरे पास न तो कोई रोशनी का प्रबंध था और न ही किसी घर से रोशनी माँगने का होश ही रहा। विचलित मन। आक्रोश और भय से मिश्रित। चार-पाँच किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद सीधे रास्ते में पहुँचा तो पीछे […]
Tag: S R Harnot
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मिट्टी के लोग
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माँ पढ़ती है
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बिल्लियाँ बतियाती हैं
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