खो न जाएँ दिन | राधेश्याम शुक्ल खो न जाएँ दिन | राधेश्याम शुक्ल कुछ करें‘बाजार’ से‘घर’ लौट आएँ दिन,‘बही-खातों’ में उलझ करसो न जाएँ दिन। दिनतराजू पर तुलेहारे-थके, ऊबेरोज,बनकर हादसेअखबार में डूबे।‘आदमीयत’ की तरह हीखो न जाएँ दिन। ‘भाव’ के हाथोंकभी गिरतेकभी चढ़ते‘हवस’ के चश्मेहमेशालाभ ही पढ़ते।कल सरेबाजार,नंगे हो न जाएँ दिन। कल,खिलेंगे फूलतो […]
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चलो घर चलें | राधेश्याम शुक्ल
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